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संमोक्षा
कि इनकी मेहरवानी से हमको लाभ मिला है । किन्तु वास्तव में देखा जाय ता लाभ मिला है अपने अंतराय कर्म के क्षयोपशम से और अपनी मेहनत से ( पुरुषार्थ से ) दूसरा तो केवल निमित्त मात्र है उसी निमित्तको मुख्य करके यह कह दिया जाता है कि उनकी मेहरवानी से ऐसा हुवा है उसी प्रकार भगवानकी भक्ति करने से परिणामोंकी विशुद्धि हो जाती है और अशुभ कर्मकी निर्जरा होकर अशुभ कर्मके उदयसे आने वाली वाघायें टल जाती है इस कारण यह कह दिया जाता है कि हे भगवान तुम्हारी कृपासे यह मेरे दुःख दूर हो गये हैं । वास्तव में देखा जाय तो दुःख दूर हुवा अपने ही पुरुषार्थके द्वारा परिणामों की विशुद्धि करने से कि परिणामों की विशुद्धि हुई भगवानके गुणोद्गान करने से इसलिये उनके गुणों का मुख्य लक्ष करके यह कह दिया जाता है कि है भगवान ! यह तुम्हारी हो कृपा है। ऐसा न्याय है जो कृत्यज्ञ पुरुष होता है वह जिस निमित्त से जो कार्य सिद्ध हुआ है उस निमित्त का उपकार नहीं भूलते हैं। बस, यही कारण है कि भगवान के निमित्त से हमारे परिणामों की विशुद्धि होकर हमारा कार्य सिद्ध हो जाता है इसलिये हम भगवानके गुणोंके स्मर्ण का उपकार मान कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रगट कर कहते है कि "तुम गुण चिन्तत नशत तथा भय, ज्यों घन वलत समीर" अर्थात् तुम्हारे गुणोमें ही वह शक्ती है जो तुम्हारा गुण चिन्वत करता है उनका सब दुःख दूर होकर वह निर्भय हो जाता है जैसे पवनके जोग से घन ( वादल ) छिन्न भिन्न हो जाते हैं । इसके उदाहरण एक नहीं अनेक हैं। जो व्यक्ति भगधानके चरणों में संलग्न हो कर पूर्णतया आत्मा के साथ अपना दुःख निवेदन करता है तो उनका दुःख अवश्य ही दूर हो जाता है । यह भगवानकी भक्तिकी अचिन्त्य महिमा है अतः वादिराज सूरि कहते हैं कि-
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