SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा २६ .inwrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrameramanaraurrrrrrrrrrror कालका जो समय नियत है उसके पूरा होने पर स्वभावतः उस के वादके कालका प्रारंभ होजाता है। उदाहरणार्थ-अवसर्पिणी कालमें जीवोंकी आयु और काय ह्रासोन्मुख पर्यायों के होने में निमित्त होते हैं। किन्तु अवसर्पिणी कालका अंत होकर उत्सर्पित णीके प्रथम समयसे ही यह स्थिति बदलने लगती है। कर्म और नोकर्म श्रादिभी उसी प्रकारके परिणमनमें निमित्त होने लगते हैं। विचार तो कीजिये कि जो औदारिक शरीर नामकर्म उत्तम भोगभूमि में तीन कोसके शरीरके निर्माण में निमित्त होता है वही औदारिक शरीर नामकर्म अवसर्पिणीके छटेकालके अंत में एक हाथके शरीरके निर्माणमें निमित्त होता है। कोई अन्य सामग्री तो होनी चाहिये जिससे यह भेद स्थापित होता है। इन कालों की अन्तर व्यवस्था को देखें तो ज्ञात होता है कि उत्मर्पिणी के तृतीयकालमें और अवसर्पिणीके चतुर्थ कालमें चौवीस तीर्थकर वारह चक्रवर्ती नौ नारायण नौ प्रतिनारायण नौ बलभद्र ग्यारह रुद्र और चौवीस कामदेवोंका उत्पन्न होना निश्चित है । निमित्तानुसार ये पद कभी अधिक और कभो कम क्यों नहीं होते ? विचार कीजीये । कर्मभूमिमें आयुकर्मका बन्ध आठ अपकर्षण कालोंमें या मरणके अन्तमुहूर्त पूर्व ही क्यों होता है ? इसके बन्ध के योग्य परिणाम उसी समय क्यों होते हैं ? विचार कीजिये । जो इस अवस्थाके भीतर कारण अन्तर्निहित है उसे ध्यानमें लीजिये। छह माह आठ समय में छह सौ पाठ जीव ही मोक्ष लाभकरते है ऐसा क्यों हैं विचार कीजिये । काल नियमके अन्तगत और भी बहुत सी व्यवस्थायें हैं जो ध्यान देने योग्य हैं। भावकी अपेक्षा कषायस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं वे न्यूनाधिक नहीं होते स्थूलरूपसे सब लेश्यां छह हैं। उनके अवान्तर भेदोंका प्रमाण भी निश्चित है । For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy