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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ vwwwrmwinni..... ..... जैन तत्त्व मोमांसा की नहीं क्योंकि वहां पर न ध्यान है और न योग है कर्मों का क्षा होही जाता है। तो ठीक है पर चउदवे गुणस्थानत # तो ध्यान का निमित्त है यह वात तो मिद्ध होचुकी । चवदचे गुगास्थानके अंतसमय तो मोक्षप्राप्ति में समयभेद भो नहीं है जिसममय उक्त गुणस्थानका अंत हुश्रा उसीममय में मोक्ष की प्राप्ति हुई। फिर हार जीत किसकी ? उपादान अपने ठिकाने पहुंचे और निमित्त अपने ठिकाने रहे दोनों के परस्परका संबंध छूट गया । जब तक मोक्षप्राप्ति उपादानको न हुई तब तक निमित्तका संबंध रहा । इस कथनसे भी निमित्तकी हार नही हुई । प्रत्युत निमित्तकी सार्थकता ही सिद्ध हुई । अतिम निष्कर्ष भैया भगोतीदासजी ने जो निकाला है उससे भी निमित्तको मार्थकता ही सिद्ध होती "उपादान अरु निमित्त ये सव जीवनप वीर। जो निजशक्ति सम्हाल ही सो पहुचे भवतीर" ४२ अर्थात् निमित्त और उपादानका मम्बन्ध मवजीवोंके माथ है किन्तु जो जीव अपनी शक्ति ( भेदविज्ञान ) से निमित्त के द्वारा अपना कार्य सिद्ध करलेते हैं वे जीव मंमारसे पार होजाते हैं । जिसप्रकार पोत ( नाव ) के द्वारा नदी म मुसाफिर पार होजाते हैं उसीप्रकार निमित्तके सहयोगस यह संसारी जोव संसार समुद्रसे पार हो जाते हैं। उपरोक्त दोहा का यह तात्पर्य है। अतः भैया भगोतीदासजी कहते हैं कि उपादान अरु निमित्तको सरस वन्यो सम्बाद । समदृष्टि को सरल है, मूरखको वकवाद ४४ अर्थात् उपादान और निमित्तका यह मैने सरस सम्बाद For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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