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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४८ जैन तत्त्व मीमांसा की इससे स्पष्ट है कि काललब्धि और होनहार को पुरुषार्थद्वारा बनाया जाता है वह अपने श्राप विनाउद्यम ( पुरुषार्थ ) के नहीं बनता । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूसरी गाथाका अर्थ है - कालादिलब्धि के संयोग पदार्थ नाना शक्तिसंयुक्त होता है अर्थात् वाह्यनिमित्तों के मिलनेपर पदार्थ कार्योत्पत्ति करने में समर्थ होता है क्योंकि वह परिणमनशील है इसलिये उसके परिणमन करने में कोई बाधा नहीं दे सकता है । जैसा कि समयसार में कहा है " पुद्गल परिणामी दरव, सदा परणवे सोग । यातें पुद्गलकर्मको, कर्ता पुद्गल होय" अतः सर्व द्रव्य परिणमन शील हैं इसलिये वे सदा परिणमन करते रहते हैं अन्यथा उनमें उत्पादव्ययकी सिद्धि ही नहीं होता अत एव पदार्थ सर्वही परिणमनशील हैं इसी बात को दिखाने के हेतु उक्त गाथा प्रगट की है। इसके पहिले गाथा २१७ में परिमनशक्तिका निरूपण करते हुये कार्तिकेय स्वामी कहते हैं कि"शियणियपरिणामाणं यि गिय दव्णं चि कारणं होदि । अणं वाहिरदव्वं णिमित्तं वियाह" २१७ भावार्थ-जैसे घट आदिकू माटी उपादान कारण है । अर चाक दंडादि निमित्त कारण हैं । तैसे सर्वद्रव्य अपने अपने पर्यायकू' उपादान कारण हैं । काल द्रव्य निमित्त कारण है। इससे स्पष्ट है कि कार्यरूप स्वयं द्रव्य परिणमन करता है किन्तु उसमें वाह्य निमित्त कारण हैं । ऐसे सर्वद्रव्य अपने पर्यायकू' उपादानकारण हैं, काल द्रव्य निमित्त कारण है । 1 है कि कार्यरूप स्वयं द्रव्य परिणमन करता इससे हिन्तु उसमें वाह्य निमित्तकी आवश्यक्ता अनिवार्य है । जैसे घटरूप For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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