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समीक्षा
छायातवटियाणं पडिवालंताण गुरुभेयं " टीका-वरं ईपद्र चौ वरैः श्रेठ'तैस्तपोभिश्च स्वर्गो भवति तयार । मादुःग्वं भवतु निरये नरकावासे इतरैरवतैस्तपोभिश्च । छायातपस्थितानां ये छायायां स्थिता अनातपे वर्तते ते सुखेन तिष्ठति, ये बातपे धर्मे स्थिना वर्तन्ते ते दुःखेन तिष्ठन्ति । ___ प्रतिपालयतां व्रतानि अनुतिष्ठतां स्वर्गो भवति तदरं संसारिस्वेनापि ते सुखिनः । अब्रतानि प्रतिपालयतां नरके दुःखमनुभवतां अतिनिदितमिति महान् भेदो वर्तते ।
प्राचार्य कुन्दकुन्दस्वामी कहते हैं कि जैसे छाया में तिष्ठना सुखप्रद है तैसे व्रतादि धारण कर स्वर्गादिमें रहना संसारमें सुखदायक है । किन्तु धूपमें तिटना जैसे दुःखदायक है तैसे ही अवतसहित रहकर नरकादिक के दुख भोगना संसार में दुःखदायक है इसलिये दाना अवस्था में महान अन्तर है। ___क्या यह कथन मिथ्या है ? यदि है तो ब्रतादिक धारण करना निष्प्रयोजन है क्योंकि व्रतादिक धारण करने पर भी जो पर्याय जिस समयमें नियत है वह आपके कथनानुसार आगे पीछे तो होगी ही नही, फिर व्रतादिक धारण करना स्वतः निष्प्रयोजन है । यदि यह बात सत्य है तो व्रतादिक धारण करनेसे स्वर्गादिककी प्राप्ति होती है तो नियमितपर्यायका कथन आपका असत्य है । इसके अतिरिक्त आप जो द्रव्यमें भूत भविष्यत् वर्तमानसम्बन्धि समस्त पर्यायें विद्यमान मान मान कर एकके पीछे एक उदयमें आती हैं ऐसा कहते हैं उसका खंडन आपके दिये गये पंचाग्तिकायके प्रमाणसे होजाता है। क्योंकि उसमें कहा गया है कि___ " असदुपस्थितस्वकालमुत्पादयति चेति " इसका अर्थ करते हुये ओप भी स्वीकार करते हैं कि "जिस
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