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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा २२५ में आवने योग्य है से इऋट होय उदय आवे हैं । तिनि सब परमाणुनिक अनुभाग मिले जेता अनुभाग होय तितना फल तिस काल विषे निपजे ।" अर्थात किसी जीवके अनेक कालका संचय किया हुआ कर्मा एक काल में उदय आवे अथवा किसी जीवके थोडे कालका संचय किया हुआ कर्म एक कालमें उदय आवे किसीका मंद उदयमें श्रावे किसीके संक्रमण रूप होकरि उदयमें आवे, किसीके उत्कर्षण अपकर्षण रूप होकर उदयमें आवे । किसीके सत्तामें ही नष्ट होजाय उदय में ही नहीं आवे इत्यादि अनेक रूप अवस्था होकर उदयम आते हैं उनका अनेक रूप क्षयोपशम होता है इसलिये काँके निमित्तम होनेवाली अनेक अवस्था तिसको न मानकर योग्यता का गीत गाना सर्वाथा आगविरुद्ध है । योग्यता भी निमित्तानुमार उपलब्ध होती है इसका निषेध नहीं किया जा सकता । ___ गुरुकी देशनासे और शास्त्रके पठन पाठन से सम्यग्ज्ञानका प्राप्ति होती है इसके विना नहीं होती यह जैनागमका अटल सिद्धान्त है इसको अकिंचितकर मानकर उडाना चाहते हो सो यह आपके उद्घानसे उड नहीं सकता क्योंकि इसके बिना सद्ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। आपको जो सिद्धान्तशास्त्रीकी पदवी मिली है क्या वह बिना गुरुके या शास्त्रों के पठन पाठनके ही मिली है कदापि नहीं । इस रूप योग्यता आपको स्वयमेव प्राप्त नहीं हुई उसमें निमित्त कारण गुरु और शास्त्रोंका पठन पाठन है इसको आप इनकार नहीं कर सकते । ___ "गुरुके निमित्तसे श्रद्धा सम्यक्त्व नहीं होती " ऐसा माननेवाले कानजी, वे भी अब रास्ता पर थोडे थोडे आये हैं। वे भी अब कहने लगे हैं कि For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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