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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा उससे जीवकी केवलज्ञान रूप पर्याय प्रगढ कैसे हुई ? क्योंकि एकके अभाव में दूसरा की कार्योत्पत्ति नहीं होती और निमित्त कारण भी श्रावको नहीं माना जा सकता | परन्तु एकके अभाव में दूसरेकी कार्यालत्ति आमानी होसकती है। और प्रतिकूल कणके अभाव विना कार्योत्पत्ति नहीं होती यह ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है। एक दूसरे की कार्यात्पत्ति में एक नहीं अनेक उदाहारण दिये जा सकते हैं। जिस प्रकार आंख का मोतिया विन्दुको हटाने में दूर करने से दीखने लग जाता है। उसी प्रकार आत्मा के ज्ञान पर ज्ञानावरण कर्मका आवरण आया हुआ था वह दूर होनेसे केवलज्ञान गट होगया जिसप्रकार आंखों के द्वारा देखने योग्यता आत्मामें मौजूद होते हुये भी मोतियाविन्दु आजा आजावेसे आत्मा आंखोंके द्वारा कुछ भी नहीं देख सकता, योग्यता देखनेके लिये अयोग्य हो जाती है । उसीप्रकार आत्मा में केवलज्ञानकी योग्यता शक्तिरूप से विद्यमान रहनेपर भी ज्ञानावरीकर्मका पटल आडा आजानेसे श्रात्मा अपने श्रात्मप्रदेशों के द्वारा देख नहीं सकता । जिसप्रकार आंखोंके ऊपर आया हुआ मोतियाविन्द का पटल आपरेशन द्वारा दूर करनेसे दीखने लग जाता है, उसी प्रकार श्रात्मप्रदेशां पर आया हुआ ज्ञानावरण कर्मका पटल ध्यानाग्नि द्वारा नष्ट कर देनेसे आत्मा अपने प्रदेशों द्वारा देखने में समर्थ हो जाता है ! यह प्रत्यक्ष आंखोंका दृष्टान्त देखने में आता है जो मोतियां विन्दुके अभाव में आंखोकी ज्योति प्रगट हो जाती है । उसी प्रकार ज्ञानावरणादि कर्म पटलों के नष्ट हो जाने पर केवल ज्योति श्रत्माची प्रगट होजाती है इसलिये यह कहना कि एकके अभाव में दूसरे का कार्य सिद्ध नहीं होता यह बात आगम और युक्तिसे 'दोन प्रकार असिद्ध है : For Private And Personal Use Only २०६
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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