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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन तत्त्व मोमांसा की गये प्रमाणोंसे अच्छी तरह सिद्ध होजाती है जब द्रव्यमें नियतरूपसे पर्याय मौजूद नहीं हैं और उसमें काललब्धि श्रादिके निमित्तानुसार नवीन नवीन ही उत्पन्न होती रहती है तब काललब्धि आदि निमित्तोंके अनुसार उत्पन्न होने वाली नवीन नवीन पर्यायोंको नियत रूपसे क्रमबद्ध मानना मवेथा मिथ्या है । इस विषय आपने जो प्राप्तमीमांसा का तथा बाट सहस्रीका प्रमाण दिया है वह आपकी मान्यताका पोषक नहीं है उससे ग्रह वात सिद्ध नहीं होती कि मालामें मोतियों की तरह भूत भविष्यत और वर्तमानकी सर्व पर्याय द्रव्यमें श्रावस्थित रहती है । उनसे तो यही वात ध्वनित होती हैं कि यदि पर्याय असत् है तो द्रव्य भी असत् है। क्योंकि पर्याय द्रन्यकी ही है द्रव्यको छोडकर वह कोई अलग पदार्थ नहीं है। जव पदाथ नित्य है तव उसका परिणमन भी नित्य है । यदि ऐसा न माना जायगा तो आकाशके कुसुमवत् अमत् पर्यायकी उत्पत्ति भी नही होगी। इसहाल में कोई कार्य भी नहीं बनेगा । इसलिये जिसप्रकार पदार्थ नित्य है उसीकार उसका परिणमन भी नित्य है । अर्थात् पदार्थ कोई भी अपरिणामी नहीं है। पदाथका परिणमन है वही तो पर्याय है अतः परिणमन कहो या पर्याय कहो एक ही बात है जो लोग द्रव्यको अपरिणामी मानते हैं उनका यहां निषेध किया गया है न कि क्रमवद्ध पर्यायकी .. सिद्धिमें समंतभद्रस्वामीने तथा विद्यानन्दीस्वामीने समर्थन किया है ? कदापि नहीं, देखो उनके वाक्य ।। "यद्यसत् सर्वथा कार्य तन्माजनि खपुष्पवत् । मोपादाननियमो भृन्माश्वासः कार्यजन्मनि ।। आप्त मीमांसा For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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