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समीक्षा
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हुई थी वे सब द्रव्यरूपसे वर्तमान पदार्थमें अवस्थित हैं।
और भविष्यत काल में जो जो पर्याय होंगी वे भी द्रव्यरूपसे बतमान पदार्थमं अवस्थित हैं । अत एव जिस पर्यायके
उत्पादका जो समय होता है उसी समयमें वह पयाय .. उत्पन्न होती है। और जिस पयायके व्ययका जो समय
होता है उससमय वह विलीन होजाती है। एसी एक भी पर्याय नहीं है जो द्रव्यरूपसे वस्तुमें न हो और उत्पन्न होजाय । और ऐसी भी कोई पयाय नहीं है जिसका व्यय होने पर द्रव्यरूपसे वस्तुमें उसका अस्तित्व ही न हो "
पृष्ठ १६४ जैन तत्त्वमीमांसा इसके कहनेका तात्पर्य यह है कि जिसप्रकार मोतियोंकी मालामें सब मोती अपने अपने स्थानमें चमकते रहते हैं और उनकी गणना करनेसे पूर्व पूर्वके मोतीयोंका व्यय होता जाता है । एवं आगे आगे के मोतियोंका उत्पादन होता जाता है और वह उत्पाद व्यय मालारूपसे वस्तुमें नियत रूपसे मौजूद है और उनका क्रमबद्ध ही उत्पाद व्यय होता है उसीप्रकार सर्ववस्तुमें मोतियोंकी तरह सर्व पयोयें क्रमवद्ध चमकती हुई अवस्थित है । उनका अपने अपने स्वकालमें ही उत्पाद व्यय होता है । इसलिये उनका समय नियत है अर्थात् वस्तुमें भूत भविष्यत और वत मानकालकी सव पर्याय मालामें मोतियोंकी तरह अवस्थित है. वह सब क्रमवद्ध हैं। ऐसा नहीं है कि-भूत भविष्यत और वर्तमानकालकी सव पर्यायें द्रव्य में अविद्यमान हों किन्तु ऐसा मानना सर्वथा जैनागमसे प्रतिकूल है । आप जैसा आशय प्रवचनसारका निकालते हैं वेसा आशय न तो कुन्दकुन्दस्वामका
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