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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा इसको कुभकार का कहना यहाँ उपचरित है मिथ्या है इसी प्रकार कंवलज्ञान की उत्पत्ति का कारण जीवका उपादान है। मोहादिक कदयका कारण नहीं जो उनमें मोहादिक कर्मों के क्षयका कारण कहा गया है वह उपचरित है अथवा धर्मास्तिकायके अभावसे भगवान लोकाकाशके आगे गमन नहीं करते यह भी कथन उपचारत ही है क्योंकि धमास्तिकाय तो पर है परके अभावी स्व का गमन नहीं रुक सकता स्वका गमन अपनी योग्यतान हो सकता है अतः भगवान लोकाकाशके आगे गमन नहीं १.रते इसमें कारण भगवानको योग्यता है : अर्थात् लोकाकाशके आगे जाने की उनमें योग्यताही नहीं है । इसीप्रकार भगवान महाबीरस्वाम वि. दिव्यध्वनि ६६ दिनतक न खिरी उसमें गणध. * का अभाव कारण नहीं है किन्तु इतने दिनतक उनमें दिव्यध्वनि करनेको योग्यता ही नहीं थी इसी कारण ६६ दिन उनकी दिव्यअनि नहीं खिरी क्योंकि द्रव्यमें समय : कीबोग्यता भिन्न २ है इसलिये समय समय का कार्य भिन्न भिन्न होता है । ऐसा पंडितजीका कहना है। "इसप्रकार इतने विवेचनसे यह सिद्ध हुआ कि प्रत्यक उपादान अपनी अपनी स्वतंत्र योग्यता संपन्न होता है और उसके अनुसार प्रत्यक कार्यकी उत्पत्ति होती है । तथा इससे यह भी सिद्ध हुआ कि प्रत्येक समयका उपादान पृथक पृथक् है इसलिये उनसे कमशः जो जो पर्याय उत्पन्न होती हैं वे अपने अपने काल. नियत हैं। वे अपने अपने समयम ही होती है। आगे पीछे नहीं होतो " जैनतत्त्व मीमासा पृष्ठ १६२ । इसके कान का सारांश यह है कि भगवान महावीरस्वामाके उपादानमें ३६ दिन तक दिव्यध्वनि खिरनेकी योग्यता नहीं था इसलिये उनको ६६ दिन गणधरका योग न मिला । अथवा For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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