________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समीक्षा
किसे इष्ट नहीं होगा ? इस संसारी जीव को स्वयं निश्चय स्वरूप बनने के लिये अपने में अनादि काल से चले आरहे इस श्रज्ञान मूलक व्यवहार वा ही तो लोप करना है उसे और करना ही क्या है वास्तव में देखा जाय तो यही उसका परम पुरुषार्थ है इसलिये व्यवहार का लोप हो जायगा इस भ्रान्ति श परमार्थ से दूर रह कर व्यवहार को ही परमार्थ रूप मानने की चेष्टा करना उचित नहीं है।"
इस वक्तव्य में पंडितज ने व्यवहार को कल्पित ठहराया है इसलिये इस वहिपत त्याहार वा लोप करने के लिये परम ( उत्कृष्ट ) पुरुषार्थ करने की प्रेरणा की है। तथा व्यवहार को अज्ञान मूलक कह कर उसका लोप करने से परमार्थ की सिद्धि होगी इसलिये व्यवहार का लोप करना सबके लिये इष्ट है ऐसा उनका कहना है । अब इस पर श्रागम और युक्तियों द्वारा विचार करना है कि पंडितजी का यह कहना आगम और युक्ति संगत है या असंगत है। . अब बस्तु भेदाभेद रूप है तब वस्तु में भेद रूप व्यवहार करना कल्पित संबंध कैसा ? और उसका लोप करने में परमार्थ की सिद्धि कैसी क्योंकि परमार्थ, वस्तु में व्या हार द्वारा भेद उसके गुणों में ही तो किया जाता है न कि उ. के साथ भूठा म्वरूप सम्बन्ध जोडा जाता है ? कदापि नहीं । गुण गुणी में ही व्यवहार द्वारा भेद किया जाता है इसलिये वह भेद कल्पित-झूठा नहीं है सत्यार्थ है इसलिये गुणी के गुणों को कल्पित ठहराकर उसका लोप करने से परमार्थ स्वरूप गुणी काही लोप हो जायगा, फिर व्यवहार के लोप से परमार्थ की सिद्धि कैसी ? क्योंकि गुणों के अभाव में गुणी का अभाव अवश्य ही होगा क्योंकि कथंचित् निश्चय से गुण गुणी अमेद स्वरूप भी है और कथंचित् वह
For Private And Personal Use Only