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जैन तत्त्व मीमांसा की ___ उपरोक्त कथनसे यह सिद्ध हो जाता है कि व्यवहार नयका उपदेश न्यायप्राप्त है अतः जो व्यवहारनयको सर्वथा अभूतार्थ असत्यार्थ मानता है एवं केवल निश्चयनयकोही एक भूतार्थसत्यार्थ मानता है वह मिथ्यादृष्टि है क्योंकि निश्चयनयसे देखा जाय तो जीव और पुद्गल भिन्न भिन्न ही हैं तथा रागद्वेषरूप परिणाम ते भी जीवका स्वभाव भाव नहीं है। इस कारण उनके मत में बस स्थावर जीवों का वध करनेसे हिसा होती है तथा जीवोंकी रक्षा करनेसे अहिसा धर्मका पालन होता है यह बात सर्वथा मिथ्या ठहरती है इसी कारण निश्चयावलम्बी मिथ्याइपिजीब नीव वध करने में पाप नहीं समझते जसा कि कानजा स्वामी के नीचे लिखे वाक्यों से सिद्ध होता है।
"जीव और शरीर भिन्न भिन्न ही हैं और जड़को मारनेमें हिंसा नहीं होती।
__ आत्मधर्म पृष्ठ १६ अं० २ वर्ष ४ "मै यह जीवकी रक्षा करू ऐसी दयाकी भावनाभी परमार्थसे जीव हिंसा ही है।
___ आत्म धर्म पृष्ठः १२ अं० १ वर्ष ४ __"अज्ञानी यह मानते हैं कि बहुतसे जीव मरेजारहे है तो उस समय उन्हें बचाना अपना कर्तव्य है और उन्हें बचाने का शुभभाव चेतनका कर्तव्य है इस प्रकार मिथ्यादृष्टि जीव अपनेको पर पदार्थका और विकारका कर्ता मानता है" --आ० ध० पृ० १३ अंक १ वर्ष १
"लौकिक मान्यता एसी है कि पर जीवकी हिंसा न
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