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ममोक्षा
" तसिद्ध: सिद्ध सम्बन्धो जीवकम भयोमिथः सादिसिद्धेरसिद्धत्वात असत्संदृष्टितश्च तत् ४०
र्थात जीव और कर्मका सम्बन्ध प्रसिद्ध है वह अनादिकाल से बन्धरूप है " श्रनादिमम्बधे च " तत्त्वार्थसूत्रे | यह बात प्रमाण सिद्ध है। अतः जीव कर्म का सम्बन्ध सादि- किसी समय विशेष में हुवा अथवा जीव और पुद्गल यह दोनू द्रव्य स्वतंत्र होनेसे इनका परस्पर में बधान नहीं होता है यह बात असत्य सिद्ध हो चुकी क्योंकि ऐसा मानने में इतरेतर अन्योन्याश्रय आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। और ऐसा मानने में कोई ठीक दांत भी नहीं मिलता है | अतः कनक पाषाणका तिल तेलादिकं दृष्टांतों से जीव कर्मका अनादि सम्बध ही सिद्ध होता है। यहां पर कोई यह तर्क करे कि दो पदार्थोंका सम्बन्ध हमेशा से ही कैसा ? वह तो किसी खास समय में जब दो पदार्थ मिले तभी हो सकता है इसका समाधान यह है कि सम्बन्ध दो प्रकार का होता है । किन्हीं पदार्थो का तो सादिसम्बन्ध होता है जैसाकि मकान बनाने में ईंट चूना पत्थरादिका होता है और किन्हीं पदार्थों का अनादि सम्बन्ध होता है जैसा कि कनकपाषाण अथवा जमीन में मिली हुई अनेक पदार्थोंका अथवा वीजवृक्षका तिलतेल का अथवा जगद्व्यापी महास्कन्धका इत्यादि अनेक पदार्थोंका सम्बन्ध अनादिसे है इसी प्रकार जीव और कर्मका सम्बन्ध भी अनादिका | और यहां अनादि सम्बन्ध जीवकी अशुद्धताका कारण है ।
जीवस्य शुद्धरागादिभावानां कर्म कारणं । कमणस्तस्य रागादिभावाः प्रत्युपकारिवत् ४१
अर्थात जीवके शुद्ध रागादिक भात्रोंका कारण कर्म है । उस कर्म के कारण जीवके रागादिकभाव हैं। यह परस्परका कार्य
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