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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाक्षा दूसरे द्रव्यमें संक्रमण होता नहीं तव एक द्रव्यम दूसरे द्रव्यका कारणरूप गुण और दूसरे द्रव्यमें उसका कर्मरूप गुण कैसे रह सकता है ? अर्थात् नहीं रह सकता है" ठीक है किन्तु पंडितजी यह तो बतानेकी कृपा करें कि क्या निमित्तकारण मानने से एक द्रव्यमें दूसरे द्रव्यके गुणोंका संक्रमण मानना ही पड़ता है ? __और कर्मों के निमित्तसे जीवकी शुभाशुभरूप अवस्था होतो है ऐसा माननेसे जीव द्रव्यकी क्या स्वतंत्रता नष्ट हो जाती है । इसलिये आप कर्मो के निमित्तसे जीवके शुभाशुभ भाव नहीं होते और कोंके अभावमें जीवके शुद्धभाव नहीं होते ऐसा मानते हैं यदि ऐसाही है तो जीव और पुद्गलका अनादि कालसे संयोग सम्बन्ध चला पारहा है तो भी आजतक किसीका गुणधर्म दूसरे में संक्रमणरूप क्यों नहीं हुआ। और उनकी स्वतंत्रता आजतक नष्ट क्यों नहीं हुई । जीव सदा चैतन्य स्वरूप ही क्यों रहा और पुद्गल सदा पुद्गल रूप ही क्यों रहा । आपके कथनानुसार एकका गुणधर्म दूसरे में आजाना चाहिये था इसलिये मानना पडेगा कि जोव और पुद्गल अपनी भाविकी शक्ति के द्वारा निमित्तानुसार वैभाविक रूप परिणमन तो करते हैं किन्तु निमित्तका गुणधर्म उपादानमें और उपादानका गुणधर्म निमित्तमें नहीं जाता यह अनादिकालकी मर्यादा है । जैसा कि सर्वविशुद्धि द्वार में कहा है __"जीव अर पुद्गल कर्म रहे एकखेत यद्यपि तथापि सत्ता न्यारी न्यारी कही है। लक्षण स्वरूप गण परज प्रकृति भेद दहुँमें अनादि ही की दुविधा ह रही है । ___ एक परिणामके न कर्ता दरख दोय दोय - परिणाम एक दरव धरत है। एक करतूति दोय द्रव्य कवहूं न करे, For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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