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ममीक्षा
__ अर्थ--यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध है कि घर स्त्री आदि होने पर हा जोवों को सुख होता है उनके अभाव में उन्हें सुख भी नहीं हाता । इसलिये जीव ही उनका कर्ता है और स्वयं ही उसका भोक्ता है । अर्थात् अपनी सुख सामग्री को यह जीव स्वर्ग मंग्रह करता है और स्वयं भोक्ता है।
उत्तर--- सत्यं वैपयिकमिदं परमिह तदपि न परत्र सापेक्षम् । सति बहिरथंपि यतः किल केषाञ्चिदसुखादिहेतुत्वात् ।।
५८३ पंचाध्यायी अर्थ-यह बात ठीक है कि घर वनितादि के संयोग से यह मंसारी जीव सुख सममाने लगता है । परन्तु उसका यह सुत्र केवल वैषियिक विषय जन्य है वास्तविक नहीं है सो भी घर मनी आदि पदाशी की अपेक्षा नहीं रखता है कारण घर स्त्री
आदि याह्य पदार्थो के होने पर भी किन्हीं किन्हीं पुरुषों को सुख के बदले दुख भी होता है। उनके लिये वही सामग्री दुःख का कारण बनजाती है । इसालय"इदमत्र तात्पर्य भवतु म कताथवा च मा भवतु । भोक्ता स्वस्य परस्य च यथा कशाचच्चिदात्मको जीवः
पंचाध्यायी अर्थ-वहां पर मारांश इतना है कि जीव अपना और परका यथाकथंचित कर्ता हो अथवा भोका हो अथवा मत हो परन्तु यह चिदात्मक चैतन्य स्वरूप है : अर्थात् जीव सदा अपने भागेका ही ऋ और भोक्ता मोता है, परका नहीं।
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