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ममीक्षा
पं० टोडरमल जी के वाक्य भी मोक्ष मार्ग प्रकाश के उद्धृत किये हैं वे निम्न प्रकार है । "तहां जिन ागम विषै निश्चय-व्यवहार रूप वर्णन है निनविषै यथार्थ का नाम निश्चय है। उपचार का नाम व्यवहार है"। अधि ७ पृष्ठ ८७ "व्यवहार अभूतार्थ है सत्य स्वरूपको न निम्पै है । किमी अपेक्षा उपचार करि अन्यथा निरूपै हैं । बहुरि शुद्ध नय जा निश्चय है सो भूतार्थ है जैसा वस्तु का रूप है तैमा निरूपै हैं" अधि० ७ पृ. ३६६ __"एक हो द्रव्य के भाव को तिम ल्वरूप ही निरूपण करना सो निश्चय नय है । उपचार करि तिस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भावस्वरूप निम्पण करना सो व्यवहार है" अधि: ७ | पृष्ठ । ३६६ ___ उपचार। कथन के उदाहरण --५० फूलचन्द जी ने दिये हैं वे इस प्रकार है
१-"एक द्रव्य अपनी विवन्ति पर्याय द्वारा दूसरे द्रव्य का कर्ता है और दुमरे द्रव्य को बह पर्याय उसका कर्म है।
२-"अन्य द्रव्य अन्य द्रव्य को परिणमाता है या उसमें अतिशय उत्पन्न करता है।"
३-"अन्य द्रव्य की विवक्षित पर्याय अन्य उच्च की विवक्षित पर्याय के होने में हेतु है। उसके विना वह कार्य नहीं
होता "
___-"शरीर मेरा है तथा देश बन और स्त्री पुत्रादिक मेरे है आदि पृष्ठ। २१३।४ जैन तत्त्व मीर
पं० फूलचन्द जी के उपरोक्त कथनसे यह स्पष्ट जाहिर होता है कि उनका विचार व्यवहार नयको चाहे सद्भूत हो चाहै असद्भूत हो दोनोंही न्य वस्तु स्वरूपको धन्यथा प्ररूपै हैं ऐमा सिद्ध करने
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