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जैनतत्त्व-मीमांसा
होता । अपने अज्ञानके कारण ही संसारी जोव स्वयं पराधीन बना हुआ है, इसलिये अपने अज्ञानवश उसे ऐसा लगता है कि शरीर, भोजन, पानी, हवा आदिके बिना में जी नहीं सकता। पर्यायका स्वभाव ही विनश्वर है। हवा, पानी और भोजनके मिलने पर भी वह अपने-अपने | कालमें विनष्ट होगी ही । इसलिये पराश्रितपनेका विकल्प छोड़कर स्वभाव सन्मुख होनेका उपाय करना यही एकमात्र प्रत्येक जीवका कर्तव्य है । इस विकल्पको छुड़ाने अभिप्रायसे ही बारह भावनाओंमें प्रथम स्थान अनित्य भावनाको और दूसरा स्थान अशरण भावनाको दिया गया है ।
इतने विवेचनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि लौकिक दृष्टिसे उसी जीव निमित्त कर्ता व्यवहार आगम स्वीकार करता है जो अज्ञानी होनेके साथ विकल्प पूर्वक क्रिया परिणत हो । जो अपनी क्रिया द्वारा पुद्गल द्रव्य निमित्त होता है उसमे आचार्योंको अधिक से अधिक करण निमित्त व्यवहार ही मान्य है । इसके लिये समयसार गाथा ६५-६६ और २७८ तथा तत्त्वार्थवार्तिक अ. १ सू. १ देखना चाहिये । यदि देखा जाय तो समयसार गाथा २७८ में जो स्फटिक मणिको परिणामनेवाला कहा गया है सो वह स्फटिक अपनी क्रिया द्वारा वहाँ निमित्त नहीं हो रहा है, इसलिये वास्तवमें उसमें करण व्यवहार भी नहीं किया जा सकता । वैसे आचार्यों ने सिद्धान्तको समझानेके लिए ऐच्छिक रूप से शब्द प्रयोग किये है। चाहे कर्ता निमित्त हो और चाहे करणनिमित्त हो, हैं सबके सब निमित्त मात्र ही यह भी उनके उक्त कथनसे स्पष्ट हो जाता है । इसलिये मात्र आगम में सिद्धान्तको समझानेके लिये किये गये शब्द प्रयोगोंके आधार पर सिद्धान्तको फलित करनेकी प्रवृत्ति भ्रमको जन्म देनेवाली होती है जो इष्ट नहीं है ।
अन्तिम निष्कर्ष यह है कि जब आत्मा स्वभावमें उपयुक्त रहता है तब वे रागादि बुद्धिपूर्वक नहीं होते, अत: उनके होनेमें देवकी अपेक्षा कथन किया जाता है । यहाँ देवपदसे योग्यता और कर्म दोनोंका ग्रहण हुआ है । और जब सविकल्प अवस्थामें जीव रागादिरूप बरतते हैं तब श्रद्धाकी अपेक्षा आत्माके उनका स्वामित्व न रहनेसे ज्ञानी आत्मा उनका कर्ता नही स्वीकार किया गया है । अध्यात्ममें ज्ञानी जीवके रागादि भावोको आत्माका स्वीकार नहीं करनेमें यही दृष्टि अपनाई गई है । यह देखकर समन्तभद्र, भट्टाकलंकदेव, विद्यानन्द आदि आचार्योंके चरणोंमें नम्रतासे मेरा सिर झुक जाता है कि उन्होंने दर्शनशास्त्र में भी अध्यात्म की मर्यादाको अक्षुण्णरूपसे सुरक्षित रखकर उसे मूर्त रूप दिया है।