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जनतत्त्व-भीमांसा भी निश्चय उपादानका स्वकाल प्राप्त होने पर ही मरण होगा, अन्यथा नहीं। देखा भी जाता हैं कि विषका प्रयोग आदि होने पर भी किसीकिसीका मरण नहीं होता। और इसीलिये ज्ञानावरणादि कर्मोके अतिरिक्त अन्य जितने पदार्थ हैं उनको कार्यको अपेक्षा नोकर्म कहा गया है। फिर भी मरण के समय या इसके कुछ पूर्व कालके अतिरिक्त मरणका कौन व्यवहार हेतु हुआ इसको ध्यानमें रखकर व्यवहार हेतुओंकी मुख्यतासे ऐसे मरणको अकाल मरण कहा गया है । है तो विष प्रयोग आदि आयु कर्मके अपवर्तनके व्यवहार हेतु ही। फिर भी उन्हे बद्धिसे मरणका हेतु स्वीकार कर इसका विष प्रयोग आदिसे मरण हुआ ऐसा उपचार करके कहा जाता है । यद्यपि विष प्रयोग आदि आयु कर्मके अपवर्तनका व्यवहार हेतु है, फिर भी आयु कर्मके अपवर्तन और मरणमें कालभेद होनेपर भी व्यंजन पर्यायकी अपेक्षा समग्र पर्यायोको एक मान कर विष प्रयोग आदिको प्रकृतमें मरणका व्यवहार हेतु कहा गया है। यह सब उस जीवकी अपेक्षा सम्भव है जिसके आयुबन्ध न हआ हो । इतना विशेष जानना चाहिये। ___ शंका-जो विष प्रयोग आदि आयु कर्मके अपवर्तनके व्यवहार हेतु है, वे ही मरणके व्यवहार हेतु है ऐसा स्पष्टत: मानने में क्या आपत्ति है. क्योंकि आयुकर्मका अपवर्तन और मरणका एक काल है ऐसा क्यो न मान लिया जाय ? और एक कारणसे अनेक कार्य नही होते ऐसा भी कोई नियम नहीं है। कारण कि एक मुद्गरके प्रयोगसे घट विनाशके साथ अनेक कपालोंकी उत्पत्ति होती हुई देखी भी जाती है । ___ समाधान-जिसने परभवसम्बन्धी आयुका बन्ध किया है उसका अपने आबाधा कालके भीतर विष शस्त्रादिका प्रयोग होने पर भी मरण नही होगा, भले ही वह आबाधा एक पूर्वकोटिके विभाग प्रमाण ही क्यों न हो। और जिसने विष प्रयोग व शस्त्रप्रहार आदिके समय परभव सम्बन्धी आयुका बन्ध किया है उसके भी आयु बन्ध करने पर जब तक उसका आबाधा काल व्यतीत नही हो जायगा तब तक मरण नहीं होगा। भले ही वह आबाधा कमसे कम अन्तर्मुहर्त प्रमाण ही क्यो न हो। इससे स्पष्ट है कि विष प्रयोग आदि मुख्यतः आयुके अपवर्तनके व्यवहार हेतु है। फिर भी उनको कालान्तरमें होनेवाले मरणका व्यवहार हेतु मानकर यह कहा जाता है कि विष प्रयोग आदिसे इसका मरण हआ। कहाँ किस दृष्टिसे उपचार किया गया है यह समझ लेने पर सब कथन समझने में सुगम जाता है ।