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७० : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार
बौद्धोंने'; प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द इन तीनको सांख्योंने २; उपमान सहित चारको नैयायिकोंने और अर्थापत्ति तथा अभाव सहित छह प्रयाणोंको जैमिनीयों (मीमांसकों ने स्वीकार किया है। आगे चलकर जैमिनीय दो सम्प्रदायोंमें विभक्त हो गये-१ भाट्ट और २ प्राभाकर । भाट्टोंने तो छहो प्रमाणोंको मान्य किया। पर प्राभाकरोंने अभावको छोड़ दिया तथा शेष पांच प्रमाणोंको स्वीकार किया। इसीसे भाट्ट मीमांसक छह प्रमाणवादी और प्राभाकर पांच प्रमाणवादोके रूपमें विश्रुत हैं। इस तरह विभिन्न दर्शनोंमें प्रमाणभेदको मान्यताएँ उपलब्ध होती हैं।" (ङ ) जैन न्यायमें प्रमाणके भेद :
जैन न्यायमें प्रमाणके सम्भाव्य भेदोंपर विस्तृत ऊहापोह उपलब्ध है । श्वेताम्बर परम्पराके भगवतीसूत्र में चार प्रमाणोंका उल्लेख है ... प्रत्यक्ष, २ अनुमान, ३ उपमान और ४ आगम । इसी प्रकार स्थानांमसूत्रमें प्रमाणशब्दके स्थानम हेतु शब्दका प्रयोग करके उसके उपर्युक्त प्रत्यक्षादि चार भेदोंका निर्देश किया गया है। प्राचीन कालमें हेतुशब्द प्रमाणके अर्थ में भी प्रयुक्त होता था। चरकमें हेतुशब्दसे प्रमाणोंका निर्देश हुआ है। इसके अतिरिक्त उपायहृदयमें भी 'एवं चत्वारो
१. प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणं हि द्विलक्षणम् ।
प्रमेयं तत्प्रयोगार्थ न प्रमाणान्तरं भवेत् ।।
-दिङ्नाग, प्र० स० ( प्र० परि० ) का० २, पृ० ४ । २. दृष्टमनुमानमाप्तवचनं च सर्वप्रमाणसिद्धत्वात् । त्रिविधं प्रमाणमिष्टं प्रमेयसिद्धिः प्रमाणाद्धि ॥
-ईश्वर कृष्ण, सांख्यका०४।। ३. प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दाः प्रमाणानि ।
-गौतम अक्षपाद, न्यायसू० १।१।३ । ४. शाबरभा० १११।५। ५. जैमिनेः षट् प्रमाणानि चत्वारि न्यायवादिनः । सांख्यस्य त्रीणि वाच्यानि द्वे वैशेषिकबौद्धयोः ।
-अनन्तवीर्य, प्रमेयरत्न० २।२ के टिप्पणमें उद्धत पद्य, पृष्ठ ४३ । ६. 'अहवा हेऊ चउन्विहे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे अणुमाणे ओवम्मे आगमे ।'
-स्था० सू० ३३८ । ७. 'गोयमा-से कि तं पमाणं ? पमाणे चउन्विहे पण्णात्ते-तं जहा पच्चक्खे अणमाणे
ओवम्मे आगमे जहा अणुओगद्दारे तहा णेयव्वं पमाणं ।
भ० सू० ५।३।१११-१९२ । ८. अथ हेतुर्नाम उपलब्धिकारणं तत् प्रत्यक्षमनुमानमैतिघमौपम्यमिति ।
-चरक० विमानस्थान म०८, सू० ३३ । ९. उपायहृदय पृ० १४ ।