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६ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान -विचार
आजका गणितमूलक - भौतिक विज्ञान प्राक्कल्पनाओंके विना एक कदम भी आ नहीं बढ़ सकता ।
आलोच्य पुस्तक में सामान्यतः भारतीय तर्कशास्त्रके और विशेषतः जैन तक शास्त्र अनुमान-सम्बन्धी विचारोंका विशद आकलन हुआ है। संभवतः हिन्दी कोई दूसरा ऐसा ग्रन्थ नहीं है जिसमें एक जगह अनुमानसे सम्बन्धित विचा णाओं का इतना सूक्ष्म और सटीक प्रतिपादन हुआ हो । जो दो चार पुस्तकें मे नज़र में आयी हैं उनमें प्रायः न्यायके तर्कसंग्रह जैसे संग्रहग्रन्थोंपर आधारि नैयायिकों के तर्कसिद्धान्तका छात्रोपकारी संकलन रहता है। इसके विपरीत प्रस्तु ग्रन्थ भारतीय दर्शनके समग्र तर्क - साहित्य के आलोडन - विलोडनका परिणाम है। लेखकने निष्पक्षभावसे वात्स्यायन, उद्योतकर आदि हिन्दू तार्किकोंके और धर्मको धर्मोत्तर, अर्चंट आदि बौद्ध तार्किकोंके मतोंका विवेचन उतनी ही सहानुभूति किया है जितना कि जैनाचार्योंके मन्तव्योंका | विद्वान् लेखकने सूक्ष्म से सू समस्यायोंको उठाया और उनका समाधान किया है । विभिन्न अध्यायोंके अ र्गत संस्कृतके लेखकों और ग्रन्थोंके प्रचुर संकेत समाविष्ट हुए हैं, जिससे भारत तर्कशास्त्र में शोध करनेवाले विद्यार्थी विशेष लाभान्वित होंगे । अपनी इस परिश्र लिखी गयी विद्वत्तापूर्ण कृतिके लिए लेखक दर्शन-प्रेमियों और हिन्दी जगत बधाई के पात्र हैं ।
२५ अप्रैल, १९६९ हिन्दू विश्वविद्यालय
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— देवर