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भारतीय अनुमान और पाश्चात्य तर्कशास्त्र : ५० के द्वारा उत्पन्न होगा।" उदाहरणार्थ यों समझा जा सकता है कि गाड़ी और ऊखका वजन तीस मन है और गाड़ीका वजन दश मन हैं तो हम अवशेष विधि द्वारा ऊखका वजन निकाल सकते हैं । अर्थात् तीस मन वजनमेंसे दश मन गाड़ीका वजन निकाल देनेपर ऊखका वजन बीस मन रह जायगा।
तात्पर्य यह है कि सम्पूर्ण कारणसंयोग मालूम होने पर और एक ज्ञात कारणांशसे दूसरे अज्ञात कारणांशको अवगत कर लेना अवशेषविधिका कार्य है।
यह अवशेषविधि भारतीय अन्वय-व्यतिरेकविधिसे विशेष भिन्न नहीं है। जिस श्रेणीके कार्यकारणभावको अन्वय-व्यतिरेकविधि द्वारा अवगत किया जाता है प्रायः उसी श्रेणीके कार्यकारणाभावको उक्त अवशेषविधि द्वारा ज्ञात किया जाता है।
अतएव भारतीय अनुमानप्रणाली और पाश्चात्य तर्कप्रणाली कार्यकारणसम्बन्धकी दृष्टिसे समान हैं। पर यह स्मरणीय है कि भारतीय अनुमान पाश्चात्य तर्ककी अपेक्षा अधिक व्यापक है । इसमें ऐसे सम्बन्ध भी सम्मिलित हैं, जिनका ग्रहण पाश्चात्य तर्कशास्त्रमें न तो तादात्म्यसम्बन्ध द्वारा होता है और न कार्यकारणसम्बन्ध द्वारा ही। यथा-'एक मुहूर्त बाद शकटका उदय होगा, क्योंकि कृत्तिकाका उदय है' में उक्त दोनों प्रकारके सम्बन्धोंमेंसे कोई भी सम्बन्ध नहीं है फिर भी यह अनुमान समीचीन है; क्योंकि इसमें हेतुका साध्यके साथ अन्यथानुपपन्नत्व ( अविनाभाव ) विद्यमान हैं । अतएव भारतीय अनुमानका क्षेत्र पाश्चात्य तर्कको अपेक्षा अधिक है। अतः अनुमानमें तो पाश्चात्य तर्कका अन्तर्भाव सम्भव है पर पाश्चात्य तर्कमें अनुमानका नहीं।
1. whatever phenomenon varies in any manner whenever
another phenomenon varies in Some particular manner, is either causes or an effect of what phenomenon, or is connected with it through some fact of causation. -System of Logic, by mill, Longmans, green and Co. 1898, 263.