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५६ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार पर ये स्थायी कारण भिन्न-भिन्न परिमाणमें उपलब्ध होते हैं। अतः इनमें सहचारी वैविध्यविधिका प्रयोग किया जाता है । मिल ( Mill ) ने इसकी परिभाषा बतलाते हुए लिखा है-"यदि किसी एक घटनामें परिवर्तन होनेसे दूसरी घटनामें विशेष प्रकारसे परिवर्तन हो तो उन घटनाओंमें कार्यकारणका सम्बन्ध होता है।" घटनाओंके अनुपाती क्रममें घटने-बढ़नेका प्रकार चार तरहका हो सकता है
(१) दोनों कारण और कार्य एक-दूसरेके अनुपातसे बढ़े; यथा जितना गुड़ उतनी मिठास ।
( २ ) दोनों कारण और कार्य एक-दूसरेके अनुपातसे घटें; यथा-गुड़के घटनेसे मिठासका घटना।
( ३ ) कारण तो बढ़े, पर कार्य घटे; यथा-जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते हैं वैसे-वैसे वायुका दबाव कम होता जाता है ।
( ४ ) कारण घटे तो कार्य बढ़े; यथा-किसी कामको करने के लिए मजदूरोंकी संख्या जितनी घटती जाती है, कार्य करनेकी अवधि उतनी बढ़ती जाती है।
यों तो सहचारी वैविध्यविधि कहीं अन्वयव्याप्तिका रूप ग्रहण करती है, तो कहीं व्यतिरेकव्याप्तिका । पर यह विधि शुद्ध अन्वयविधि या शुद्ध व्यतिरेकविधिसे भिन्न है; क्योंकि इसके परिणाम अधिक स्वस्थ और निर्णयात्मक होते हैं।
अवशेष विधि ( Method of residues )
इस विधिमें पूर्व ज्ञानकी विशेष आवश्यकता होती है । जब हमें एक मिश्रित घटनाके कारणका अन्वेषण करना होता है और बहुतसे कार्यफलके कारणांशोंको अवगत कर लेते हैं तो अवशेष कार्यफलके कारणको जाननेके लिए इस विधिकी आवश्यकता होती है । इसकी परिभाषमें बताया है-"यदि पूर्व आगमनके द्वारा यह निर्धारित हो कि किसी घटनाके कार्यफलका एक भाग कुछ पूर्ववर्ती परिघटकोंके द्वारा उत्पन्न होता है तो उस कार्यफलका शेष भाग पूर्ववर्ती परिघटकों
1. Subduct from any phenomenon such part as is known
by previous induction to be the effect of certain antecederts and the residue of the phenomenon is the effect of the remaining antecedents..
-System of Logic, by Mill, Longmans green and Co. 1898, page 260,