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५४ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान- विचार
कार्यों द्वारा कारणों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है । मिल Mill) ने निरीक्षण और प्रयोगात्मक दोनों ही विधियोंसे उदाहरणोंका संकलन कर कार्य-कारणशृङ्खलाका त्रिवेचन किया है । '
संयुक्त अन्वयव्यतिरेक विधि :
यदि जाँज को जानेवाली घटनाओंके दो तीन उदाहरणों में कोई एक ही परिघटक सामान्य हो और ऐसे दो अन्य दो-तोन उदाहरणों में यह घटना या घटनाएँ घटित न हुई हों, पूर्व सामान्य परिघटकके अभाव या अनुपस्थितिके अतिरिक्त कुछ भी सामान्य न हो तो इस प्रकारके उदाहरणों में व्यतिरेक ( Differing ) परिघटक कारण या कार्यके कारणका अवश्य अङ्ग होगा । इस विधि में भावात्मक (Positive) और अभावात्मक ( Negative ) दोनों प्रकारकी घटनाएँ उदाहरण के रूप में ग्रहण की जा सकती हैं । भावात्मक उदाहरण अन्वयविधिके हैं और कारणकार्यको स्थापना निर्धारित करते हैं | अभावात्मक उदाहरण व्यतिरेकविधिके हैं, जो उक्त कारणकार्यकी स्थापनाको निश्चित रूप देते हैं । इस संयुक्त विधिको द्वयन्वयविधि भी कहा जाता है ।
इस संयुक्त अन्वयव्यतिरेकविधिकी तुलना हम भारतीय अन्वयव्यतिरेकव्याप्तिसे कर सकते हैं । प्रायः इस विधि में वे ही परिणाम निकलते हैं जो परिणाम भारतीय अन्वयव्यतिरेकव्याप्ति में निकाले जाते हैं ।
व्यतिरेकविधि :
अन्वय तथा अन्वयव्यतिरेकविधियों में कार्यकारणकी सम्भावना ही निर्धारित की जा सकती है, पर उसके 'निश्चयीकरण' या सत्यता के लिए व्यतिरेक विधिको आवश्यकता होती है । दूसरे शब्दों में हम यों कह सकते हैं कि अन्वय तथा अन्वय
1. If two or more instances of the phenomenon under investigation have only one circumstance in common, the circumstance in which alone all the instances agree is the cause ( or effect ) of the given phenomenon.
— System of Logic; By John Stuart Mill, Longmans green and Co. London, 1898, Page, 255.
2. If an instance in which the phenomenon under investigation occurs and an instance in which it does not occur, have every circumstance in common save one, that one occuring only in the former; the circumstance in which alone the two instances differ is the effect or the cause, or an indispensable part of the cause, of the phenomenon, वही, पृष्ठ २५६ ।