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चतुर्थ परिच्छेद
भारतीय अनुमान और पाश्चात्य तर्कशास्त्र
यहाँ भारतीय अनुमानका पाश्चात्य तर्कशास्त्र के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करना प्रकृत विषयके अनुरूप एवं उपयोगी होगा ।
विश्व में घटित होनेवाली घटनाएँ प्रायः मिश्रित और अनेक स्थितियोंमें सम्पन्न होती हैं । इन अनेक स्थितियों या परिघटकों ( Factors ) में से कुछ अनावश्यक और कुछ आवश्यक परिस्थितियाँ रहती हैं । अतएव जब तक व्यर्थ या अनावश्यक परिस्थितियोंका परिहार न किया जाय तब तक हम घटनाके वास्तविक कारणको अवगत नहीं कर सकते और न कार्यकारण- शृङ्खलाकी निश्चित जानकारी हो प्राप्त की जा सकती है। मिल ( Mill ने भारतीय कार्यकारणपरम्परा के अनुसार ही कॉज एण्ड इफैक्टस् ( Cause and Effects ) के अन्वेषणको पाँच विधियों द्वारा प्रदर्शित किया है
( १ ) अन्वयविधि ( Method of agreement ).
( २ ) व्यतिरेकविधि | Method of Difference ).
( ३ ) संयुक्त अन्वयव्यतिरेकविधि ( Joint Method ).
( ४ ) सहभावो वैविध्यविधि ( Method of Concomitant Varia
tions ).
( ५ ) अवशेषविधि ( Method of residues ).
इन विधियों में दो प्रकारकी प्रक्रियाएँ उपयोग में लायी जाती हैं - भावात्मक और अभावात्मक |
अन्वयविधि :
यदि किसी घटना के दो-तीन उदाहरणोंमें एक ही सामान्य घटक ( Cornmon circumstance) पाया जाय तो वह परिघटक, जिसमें समस्त उदाहरणों की समानता व्याप्त है, उस घटनाका कार्य या कारण मालूम होता है । इस विधि में कारण मालूम होने पर कार्य और कार्य मालूम होने पर कारण ज्ञात किया जाता है । यह विधि 'यत्र यत्र धमस्तत्र तत्र वह्निः' वाली भारतीय प्रक्रियाके प्राय: समान है । भारतीय अन्वय-विधि में साधन के सद्भाव में साध्यका सद्भाव दिखलाया जाता है और इस प्रक्रिया में कारणों द्वारा कार्योंका अथवा