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________________ भारतीय वाङमय और अनुमान : ५ लोकका उपकार करती है, दुःख-सुखमें बुद्धिको स्थैर्य प्रदान करती है, प्रज्ञा, वचन और क्रियामें कुशलता लाती है। जिस प्रकार दीपक समस्त पदार्थोंका प्रकाशक है उसी प्रकार यह विद्या भी सब विद्याओं, समस्त कार्यों और समस्त धर्मोको प्रकाशिका है। कौटिल्यके इस विवेचन और उपर्युक्त वर्णनसे आन्वीक्षिकी विद्याको अनुमानका पूर्वरूप कहा जा सकता है। मनुस्मतिम २ जहाँ तर्क और तर्की शब्दोंका प्रयोग मिलता है वहाँ हेतुक, आन्वीक्षिकी और हेतुशास्त्र शब्द भी उपलब्ध होते हैं । एक स्थानपर तो धर्मतत्त्वके जिज्ञासुके लिए प्रत्यक्ष और विविध आगमरूप शास्त्रके अतिरिक्त अनुमानको भी जाननेका स्पष्ट निर्देश किया है। इससे प्रतीत होता है कि मनुस्मृतिकारके समयमें हेतुशास्त्र और आन्वीक्षिकी शब्दोंके साथ अनुमान शब्द भी व्यवहृत होने लगा था और उसे असिद्ध या विवादापन्न वस्तुओंकी सिद्धि के लिए उपयोगी माना जाता था। पट्खण्डागममें ' 'हेतुवाद', स्थानाङ्गसूत्रमें" 'हेतु, भगवतीसूत्रमें 'अनुमान' और अनुयोगसूत्रमे अनुमानके भेद-प्रभेदोंकी चर्चा समाहित है । अतः जैनागमोंमें भी अनुमानका पूर्वरूप और अनुमान प्रतिपादित हैं । ___ इस प्रकार भारतीय वाङ्मयके अनुशीलनसे अवगत होता है कि भारतीय तर्कशास्त्र आरम्भ में 'वाकोवाक्यमृ', उसके पश्चात् आन्वीक्षिकी, हेतुशास्त्र, तर्कविद्या और न्यायशास्त्र या प्रमाणशास्त्रके रूपोंमें व्यवहृत हुआ। उत्तरकालमें प्रमाणमीमांसाका विकास होनेपर हेतुविद्यापर अधिक बल दिया गया। फलतः आन्वीक्षिकी में अर्थसंकोच होकर वह हेतुपूर्वक होनेवाले अनुमानकी बोधक हो गयी । अतः 'वाकोवाक्यम्' आन्वीक्षिकोका और आन्वीक्षिकी अनुमानका प्राचीन मूल रूप ज्ञात होता हैं। १. विशेषके लिए देखिए, डा. सतीशचन्द्र विद्याभूषण, ए हिस्टरी ऑफ इण्डियन लॉजिक पृ० ४० । २. मनुस्मृति १२॥ १०६, १२।१५१, ७।४३, २०११; चोखम्बा सं० सी० वाराणसी। ३. प्रत्यक्षं चानुमानं च शास्त्रं च विविधागमम् । त्रयं सुविदितं कार्य धर्मशुद्धिमभीप्सता ।। -वही, १२१०५। ४. भूतबली-पुष्पदन्त, षट्ख० ५।५।५१, सोलापुर संस्करण, सन् १९६५ ई० । ५. मुनि कन्हैयालाल; स्था० सू० पृ० ३०९, ३१०; व्यावर संस्करण, वि० सं० २०१०। ६. मुनि कन्हैयालाल; भ० सू० ५।३।१६१-६२; धनपतसिंह कलकत्ता। ७. मुनि कन्हैयालाल, अनु० सू० मूलसुत्ताणि, पृ० ५३९; व्यावर संस्करण, वि० सं० २०१०।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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