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________________ २९६ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान विचार अशुद्ध पदार्थ विवक्षा विकल्पसिद्धि वर्तमान होता या अनुमान आर्द्रन्धन - 11 नियभे ...भदात् वेदातिन्यों— ... दर्शद— .....दर्शन - न्याया .....नुभय मीमांसकादि 'चिन्ता ऊहा विज्जइ षट्टख ० सर्वप्रथम व्याप्ति - ...एवं स्पष्टतया न्यायबा - उदयने किए शान्तरक्षितने उल्लेख दाशिनिकों विद्यानन्दने विरोधी" साक्षात् न्यायविदीरिताः ३० ( वां फर्मा ) व्यभिचारा गृह सिला सिजम अमुमान वाराणी सिद्ध बाधित शुद्ध परार्थ विवक्षा विकल्प सिद्ध वर्तमान होना या आगमगम्य होना आर्द्रेन्धन - नियमे भेदात् वेदान्तियों दर्शन दर्शन न्याय ..... नुमीयते मीमांसकादि 'चिन्ता' 'ऊह ।' विज्जइ' पट्ख ० सवप्रथम एवं स्पष्टतया व्याप्ति ग्राहक न्यायवा उदयनने लिए शान्त रौते के उल्लेख: दार्शनिकों विद्यानन्दने सो क्षात विरोधी न्यायविदीरिताः ३१ ( वा फर्मा ) व्यभिचाराग्रह सिलाजिज्म अनुमान वाराणसी सिद्ध बाधित प्राक्कथन प्रस्तुत कृति 11 विषय-सूची पृ० पंक्ति १२५ १६ १२६ २८. १२७ १७ १२८ ११ १३४ १३८ १३८ १३६ १४० १४१ १४२ १४२ १४५ १५३ १५३ १५३ १५३ १५४ १९६ २०७ ५ २ ३० ९ ३१ १६ १८ ५ १९ १२ १५४ २३ १५५ १६ १७६ १६ १९४ १५ ३० ५ १३ १३ २३ ३० १२ २१५ २५ २२८ १६ २४१ ३३ २६० २५ १० १० २१ १२ ११ ૪
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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