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२२० : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार विधिसाधन और प्रतिषेधसाधन दो भेद करके विधिसाधनके धर्मिसाधन और धर्मिविशेषसाधन ये दो भेद बतलाये हैं तथा इन दोनोंके भी दो-दो भेद कहे हैं। प्रतिषेधसाधनको भी विधिरूप और प्रतिषेधरूप दो प्रकारका वणित करके दोनोंके अनेक भेदोंकी सूचना की है और उनके कतिपय उदाहरण दे कर उन्हें स्पष्ट किया है।
हेमचन्द्रने' कणाद, धर्मकोति और विद्यानन्दकी तरह हेतुभेदोंका वर्गीकरण किया है फिर भी उनसे भिन्नता यह है कि उनके वर्गीकरणमें कोई भी अनुपलब्धि विधिसाधकरूपसे वर्णित नहीं है किन्तु धर्मकीर्तिकी तरह मात्र निषेधसाधकरूपसे वणित है।
धर्मभूषणने विद्यानन्दके वर्गीकरणको स्वीकार किया है। अन्तर इतना ही है कि धर्मभूषणने आरम्भमें हेतुके दो भेद और दोनोंको विधिसाधक तथा प्रतिषेधसाधक प्रतिपादित किया है। पर विधिसाधक विधिरूप हेतुके छह भेदोंका ही उन्होंने उदाहरणद्वारा प्रदर्शन किया है, अन्य भेदोंका नहीं और इस तरह ६ + १ + २ = ९ हेतुभेदोंका उन्होंने वर्णन किया है।
यशोविजयका वर्गीकरण विद्यानन्द, माणिक्यनन्दि, देवसूरि और धर्मभषणके वर्गीकरणोंके आधारपर हुआ है । विशेषतया देवसूरि" और धर्मभूषणका प्रभाव उसपर लक्षित होता है।
इस प्रकार जैन तार्किकोंका हेतुभेदनिरूपण अनेकविध एवं सूक्ष्म होता हुआ उनकी चिन्तनविशेषताको प्रकट करता है।
१. प्रमाणमी० १२।१२, पृ० ४२ । २. वही, ११२।४२, पृ० ४२-४५ । ३. न्या. दो० पृ० ९५.९९ । ४. जैन तर्कमा० पृ० १६-१८ । ५. तुलना कीजिए-प्र० न० त० ३५४-५५, ३।६८, ६६, ७७, ३२७८, ३७६, ३७०
३.८०, ८१,३८२, ३१८३-६२, ३८४, ८५, ८७-६२, ३।१०३, ३३९४-१०२। ६. तुलना कीजिए, न्या. दी०५० ९५,९६, ९७, ९८५