________________
हेतु-विमर्श : २११
( २ ) कार्यानुपलब्धि - क्षणिकैकान्त नहीं है, क्योंकि उसका कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता ।
( ३ ) कारणानुपलब्धि - क्षणिकैकान्त नहीं है, क्योंकि कोई कारण नहीं है ।
( ४ ) स्वभावसहचरानुपलब्धि - इसमें आत्मा नहीं है, क्योंकि रूपादिविशेषका अभाव है |
( ५ ) सहचर कार्यानुपलब्धि - इस प्राणी में आत्मा नहीं है, क्योंकि व्यापारव्याहारविशेषका अभाव है ।
( ६ ) सहचरकारणानुपलब्धि - इस शरीर में आत्मा नहीं है, क्योंकि भोजनका अभाव है ।
अनुपलब्धि के दूसरे भेद असद्भावप्रतिषेधक ( सद्भावसाधक ) प्रतिषेधकरूप अनुपलब्धि के कितते भेद उन्हें अभीष्ट हैं, इसका अकलंकने स्पष्ट निर्देश नहीं किया । पर उनके प्रतिपादनसे संकेत अवश्य मिलता है कि उसके भी उन्हें अनेक भेद अभिप्रेत हैं ।
इस प्रकार अकलंकने सद्भावसाधक ६ और सद्भावप्रतिषेधक ३ इस तरह ९ उपलब्धियों तथा असद्भावसाधक ६ अनुपलब्धियोंका कण्ठतः वर्णन करके इनके और भी अवान्तर भेदोंका संकेत किया है । तथा उन्हें इन्हीं में अन्तर्भाव हो जानेका उल्लेख किया है ।
विद्यानन्दोक्त हेतु-भेद
:
विद्यानन्दका हेतुभेदनिरूपण अकलंकके हेतुभेदनिरूपणका आभारी और उपजीव्य है । किन्तु बिद्यानन्दको निरूपणसरणि एवं समीक्षात्मक अनुशीलन अतिस्पष्ट और आकर्षक है । उन्होंने ' अन्यथानुपपत्तिरूप एकलक्षणसामान्यकी अपेक्षा हेतुको एक प्रकारका कह करके भी विशेषको अपेक्षा अतिसंक्षेप में विधिसाधन और निषेधसाधनके भेदसे द्विविध तथा संक्षेप में कार्य, कारण और अकार्यकारणके रूपमें त्रिविध प्रतिपादन किया और अन्य प्रकारोंका इन्हीं में अन्तर्भाव होनेका निर्देश किया है । उनका वह निरूपण अधः प्रस्तुत है
१. तच्च साधनं एकलक्षणसामान्यादेकविधमपि विशेषतोऽतिसंक्षेपाद्विविधं विधिसाधनं निषेधसाधनं च । संक्षेपास्त्रविधमभिधीयते कार्य कारणस्य, कारणं कार्यस्य, अकार्यकारणमकार्यकारणस्येति...
-प्रमाणप० पृ० ७२ ।
२, वही, पृ० ७२ से ७५ तथा त० श्लो० १ १३, पृ० २०८-२१४ ।