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१०८ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार कि दृष्टान्त-विरोधसे प्रतिपक्षियोंको वादमें रोका जा सकता है तथा दृष्टान्तसमाधानसे अपना पक्ष परिपुष्ट किया जाता है और अवयवोंमें उदाहरणकी कल्पना दृष्टान्तसे ही होती है।
गौतमने' दृष्टान्तका स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहा है कि जिस अर्थ में लौकिक और परीक्षक दोनों सहमत हों वह दृष्टान्त है। इस दृष्टान्तका प्रदर्शन ही उदाहरण है । उदाहरणहारा उन दो धर्मोंमें साध्य-साधनभाव पुष्ट किया जाता है। जिनके अविनाभावो एकको साधन और दूसरेको साध्य बनाया जाता है। उदाहरणसे अव्युत्पन्न प्रतिपाद्यको सरलतासे अनुमेयका बोध हो जाता है। अक्षपादने दृष्टान्तके सामान्यलक्षणके अतिरिक्त एक-एक सूत्र में साधयॊक्त और वैधयॊक्त उदाहरणका स्वरूप बताया है। इससे ज्ञात होता है कि उन्हें उदाहरणके दो भेद विवक्षित हैं(१) साधर्म्य और ( २ ) वैधर्म्य ।
प्रशस्तपादने भी निदर्शनके दो भेदोंका निर्देश किया है और वे अक्षपाद जैसे ही है। न्यायप्रवेशकारने भो अक्षपादको तरह द्विविध दृष्टान्तोंका प्रतिपादन किया है।
जैन तार्किक सिद्धसेनने दृष्टान्तके उक्त दोनों भेद स्वीकार किये हैं। जहां साध्य और साधनमें व्याप्तिका निश्चय किया जाता है उसे साधर्म्य दृष्टान्त तथा
१. लौकिकपरीक्षकाणा यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तः ।
-न्यायसू० १।२।२५ । २. साध्यसाधात्तद्धर्मभावी दृष्टान्त उदाहरणम् ।
~वही. १११।३६ । ३. उदाहियतेऽनेन धर्मयोः साध्यसाधनभाव इत्युदाहरणम् ।
-वात्स्यायन, न्यायभा० ११११३६, पृ०५०। ४. न्यायसू० १११।२५, ११११३६, ३७। ५, द्विविधं निदर्शनं साधम्र्येण वैधम्र्येण च । तत्रानुमेयसामान्येन लिंगसामान्यस्यानुविधान
दर्शनं साधर्म्यनिदर्शनम् । तद्यथा-यत् क्रियावत् तद् द्रव्यं दृष्टं यथा शर इति । अनुमेयविपर्यमये च लिंगस्याभावदर्शनं वैधर्म्यनिदर्शनम् । तद्यथा-यदद्रव्यं तत् क्रियावन्न भबनि यथा सत्तेति।
-प्रश० भा० पृ० १२२ । ६. दृष्टान्तो द्विविधः । साधर्येण वैधम्र्येण च । तत्र साधम्र्येण तावत् । यत्र हेतोः सपक्ष
एवास्तित्वं ख्याप्यते । तद्यथा। यत्कृतकं तदनित्यं दृष्टं यथा घटादिरिति । वैधयेणापि । यत्र साध्याभावे हेतोरभाव एव कथ्यते । तद्यथा। यन्नित्यं तदकृतकं दृष्टं यथाकांशमिति।
-न्यायप्र० पृ० १,२। ७. न्यायाव० का० १८, १९ ।