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भवयव-विमर्श : ११ सिद्धि के लिए एक-एक ही पुष्ट हेतु और दृष्टान्त प्रयुक्त करते हुए मिलते हैं । दूसरी विशेषता यह है कि समन्तभद्रने प्रतिज्ञा,' हेतु और दृष्टान्त इन तीनोंका शब्दतः भी प्रयोग किया है, जो उनके ग्रन्थोंमें विशकलित उपलब्ध होते हैं। किन्तु गृपिच्छने उनका विशकलित प्रयोग भी नहीं किया ।
दोनों आचार्योंकी प्रतिपादनशैलीका अध्ययन करनेपर निम्न लिखित तथ्य प्रस्फुटित होते हैं :
१. समन्तभद्र के समय तक तर्कशैली विकसित हो चुकी थी, अतः वे अपने अभिप्रेतकी सिद्धि के लिए उक्त तीनों अवयवोंका तो व्यवहार करते ही हैं, पर साधर्म्य और वैधर्म्य दृष्टान्तभेदोंका भी उपयोग करते हैं।
२. न्यायसरणिसे अवयवोंका सूक्ष्म और विशद विचार समन्तभद्रसे आरम्भ होता है। समन्तभद्रने अविनाभाव, सधर्मा, साधर्म्य, वैधर्म्य, साध्य, साधन, प्रतिज्ञा, हेतु, अहेतु, प्रतिज्ञादोष, हेतुदोष जैसे तर्कशास्त्रीय शब्दोंका प्रयोग कर अवयवोपयोगी नया चिन्तन प्रस्तुत किया है । अतः स्पष्ट है कि गृद्धपिच्छने जिन अवयवोंका मात्र संकेत किया था उन्हें तर्क ( अनुमान )का रूप समन्तभद्रने दिया है।
३. समन्तभद्र सर्वज्ञ, अनेकान्त और स्याहाद जैसे दार्शनिक प्रमेयोंको अनुमानकी कसौटी पर रखकर उक्त तीन अवयवोंसे उन्हें सिद्ध करते हैं। पर गृद्धपिच्छने इन प्रमेयोंपर अनुमानसे कोई विचार नहीं किया।
हम यहाँ अपने कथनकी पुष्टिके लिए समन्तभद्रके उक्त अवयवत्रयके प्रदर्शक कुछ उद्धरण उदाहरणार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं :
( क ) सूक्ष्मान्तरितदूराः प्रत्यक्षाः कस्यचिद्यथा ।
अनुमंयत्वतोऽग्न्यादिरिति सर्वज्ञ-संस्थितिः ।। ( ख ) अस्तित्वं प्रतिषेध्येनाविनाभाव्यकर्मिणि ।
विशेषणत्वात्साधम्यं यथा भेद-विवक्षया । (ग) नास्तित्वं प्रतिषेध्येनाविनाभन्यकर्मिणि ।
विशेषणस्वाद्वधम्यं यथाऽभेद-विवक्षया ॥ (घ) विधेय-प्रतिषेध्यात्मा विशेष्यः शब्दगोचरः ।
साध्यधर्मों यथा हेतुरहेतुश्चाप्यपेक्षया ॥४
१., २. न साध्यं न च हेतुश्च प्रतिशा-हेतुदोषतः ।
-आप्तमी० का० ८० । युक्त्यनु० का० ११, १३, ४४ । ३. नयः स दृष्टान्तसमर्थनस्ते । "दृष्टान्तसिद्धावुभयोर्विवाद।
-स्वयम्मू० अयोजिन० ५२, ५४ । ४. आप्तमो० का० ५, १७, १८, १६ । २१