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ति-विमर्श : १५५
( छ ) व्याप्ति-भेद : समव्याप्ति-विषमव्याप्ति :
तर्कग्रन्थोंमें व्याप्तिके अनेक प्रकारसे भेद उपलब्ध होते हैं । कुमारिलके मोमांसाश्लोकवातिकमें' सम और विषमके भेदसे व्याप्तिके दो भेद मिलते हैं । जब व्याप्य व्यापकके देश और कालकी अपेक्षा सम देश-कालवृत्ति होता है तब उसे समत्याप्त
और उसमें रहनेवालो व्याप्तिको समव्याप्ति कहा गया है और जब वह व्यापकके देश-कालसे न्यून देश-कालवृत्ति होता है तब उसे विषमव्याप्त तथा उसमें विद्यमान व्याप्तिको विषमव्याप्ति प्रतिपादित किया गया है । पर ध्यान रहे, व्यापक व्याप्यके सम और अधिक देश-कालवृत्ति होता है, व्याप्य नहीं; अतः व्याप्य तो व्यापकका गमक हो सकता है, पर व्यापक व्याप्यका नहीं । अतएव व्याप्यको ही गमक और व्यापकको ही गम्य माना गया है । व्याप्तिके इस द्विविध प्रकारका उल्लेख कुमारिलके पररर्ती जयन्तभट्ट, उदयन" और गंगेशने भी किया है। अन्वयव्याप्ति-व्यतिरेकव्याप्ति :
अन्वयव्याप्ति और व्यतिरेकव्याप्तिके भेदसे भी व्याप्तिके दो भेद पाये जाते हैं। इन भेदोंका सर्वप्रथम संकेत प्रशस्तपादने किया है, जिसका स्पष्टीकरण एवं समर्थन उदयने किया है । जयन्तभट्ट, गंगेश,", केशवमिश्र, विश्वनाथ पंचा
१, २, ३. यो यस्य देशकालाभ्यां समा न्यूनोऽपि वा भवेत् ।
स व्याप्या व्यापकस्तस्य समो वाऽभ्यधिकोऽपि वा ॥ व्याप्यस्य गमकत्वं च व्यापकं गमिष्यते । तेन व्याप्ये गृहीतेऽथें व्यापकस्तस्य गृह्यते । न धन्यथा भवत्येषा व्याप्यव्यापकता तयोः ॥
-मी० श्ल! अनुमा० परि० श्लो०५, ४, ६ पृष्ठ ३४८ । ४. न्यायमं० पृ० १४० । ५. न्यायवा० ता० परि० १११५, पृष्ठ ७०५ । ६. त० चि० उपाधिवाद पृ० ३१६, ३१७, ३१६, ३४५ । ७. प्रश० भाष्य पृष्ठ १०२ । ८. तदनेनान्वयव्यतिरेकी एव भूयोदर्शनसहचारिणी तद्ग्रहापाय इति दशितम् । अन्वयव्यतिरेकाभ्यां प्रथमदर्शने एव व्याप्तियते ।
-किरणा० पृ० २६५ । ६. व्याख्यातः प्रतिबन्धश्च व्यतिरेकान्वयात्मकः ।
-न्यायमं० पृ० १३६ । १०. अन्वयव्याप्त्यभिधायकावयव .. व्यतिरेकव्याप्स्यभिधायकपद...।
-त. चि० पृष्ठ ७३५, ५८९-५६३ । ११. तकभा० पृ० ८०,८१ ।