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अनुमानभेद-विमर्श : १२१
बात यह है कि उन्होंने परार्थानमानके लक्षणसे पूर्व जो सामान्य अनुमानका लक्षण प्रस्तुत किया है वह स्वार्थानुमानका लक्षण है ।
सिद्धिविनिश्चयम अकलंकदेवने ' स्वार्थानुमान और परार्थानुमान दोनोंका उल्लेख किया है तथा दानों पक्ष-भेद बतलात हए कहा है कि स्वार्थानुमानमें तो जिज्ञासाके विषयभूत विशेष ( अग्नि आदि )न विशिष्ट धर्मी ( पर्वत आदि ) पक्ष होता है। किन्तु परार्थानुमानमें जनवाने का इच्छाके विषयभत विशेष ( अग्नि आदि )से विशिष्ट धर्मी पक्ष होता है, क्योंकि स्वनिश्चयकी तरह दूसरोंको भी निश्चय कराने के लिए पक्षको स्वीकार करना आवश्यक है । तात्पर्य यह क प्रतिपत्ताके भेदने अनुमानक म्वाथं ओर पराथं भद उन्हें भी अभिप्रेत है।
विद्यानन्द २ भी अनुमानो उनका भेदों का प्रतिपादन करते हैं। इतना विशेष है कि वे गर्थानुमानके भो दो भेदों का निर्देश करते है-(१) अनक्षरश्रत और ( २ ) अारश्रत । तथा उन्हें क्रमाः अधोत्रमतिज्ञान और श्रोत्रमतिज्ञानपूर्वक हाना. कारण पराक्ष श्रनामाण नन्तर्भाव करते हैं । वादिगज कृत मख्य और गौग अनुमानभेद :
वादिराजने अनुमान-भदो। भिन्न दो अन्य भेदों का प्रतिपादन किया है । व है-( १ ) गौण और ( २ ) मुख्य । इनमें गौण अनुमानके तीन भेद है( १ ) स्मरण, ( २ ) प्रत्यभिज्ञा और ( नकं । स्मरण प्रत्यभिज्ञाका, प्रत्यभिज्ञा तकका और तक अनुमानका कारण हानेम तीनों गौण अनुमान है। साध्याविनाभावी गाधनगे होने वाला गाध्यका ज्ञान मुख्यानुमान है । परन्तु वादिराजकी दम द्विविध अनमान-मान्यताका उत्तरवर्ती किमी जैन तार्किकने नहीं अपनाया और वह उन्हों तक सीमित रही है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि
१. स्वाथानुमाने जिशासितांवशमा धमी पक्षः । पराथांनुमाने पुनः जिशापायषितविशेषः स्वनिश्चयदन्येषा निश्चयोन्पादनाय पक्षपरिग्रहात्।
-मि०वि० वृ०६२, ३७३ । २.प्र. ५, पृष्ठ ७६ । ३. पराश्रमनुमानमनार श्रुनानं अक्षार अनशानं च तस्याश्रात्रमतिपूर्वकस्य श्रीमतिपूर्वकस्य ___ च नथावं.पपत्तः ।
-वही, पृष्ट ७६ । ४. अनमान मंगा ख्यात्रिकपात । तत्र गीणमनुमा विविध- स्मरणं प्रत्यभिशा तर्क
श्चात । तन्य चानमननं यथापत्तनदुनयानमान नबन्धनत्वात्। एवं मुख्य. स्याप : किन दात चेन, साधना साध्य विज्ञानमंत्र, माधनं साध्याविनाभावनियमलक्षण तस्मान्निर क्यपथमाप्तानाध्यस्य माय गत्यम्यामांसद्धस्य दिशानं तदनुमानम् । प्रमा०नि० पृष्ठ ३३,३६ ।