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९६ : जैनतर्कशास्त्रमें अनुमान विचार उसी प्रकार व्याप्तिस्मरण आदि सहित लिंगज्ञान ( लिंगपरामर्श ) अनुमानको उत्पत्तिमें कारण है।
यहाँ ज्ञातव्य है कि लिंगपरामर्शको अनुमानको परिभाषा मानने में जो आपत्ति धर्मभूषणने प्रदर्शित को है वह उद्योतकरके भी ध्यान में रही है अथवा उनके समक्ष भो प्रस्तुत की गयी जान पड़ती है। अतएव उन्होंने 'भवतु वाऽयमों लैंगिकी प्रतिपनिरनुमानमिति' अर्थात् 'लैंगिकी प्रतिपत्ति ( लिंगीका ज्ञान ) अनुमान है' कहकर साध्यज्ञानको अनुमान मान लिया है। जब उनसे कहा गया कि साध्यज्ञानको अनुमान मान लेने पर फलका अभाव हो जाएगा तो वे उत्तर देते हैं कि 'नहीं, हान, उपादान और उपेक्षाबुद्धियाँ उसका फल हैं। उद्योतकर यहाँ एक बड़ो महत्त्वपूर्ण बात और कहते हैं। वह यह कि सभी प्रमाण अपने विषयके प्रति भावसाधन है-'प्रमितिः प्रमाणम्' अर्थात् प्रमिति ही प्रमाण है और विषयान्तरके प्रति करण साधन है-'प्रमोयतेऽनेनेति' अर्थात् जिसके द्वारा अर्थ प्रमित हो उसे प्रमाण कहते हैं । इस प्रकार वे अनुमानकी उक्त साध्यज्ञानरूप परिभाषा भावसाधनमें स्वीकार करते हैं। धर्मभूषणने इसी महत्त्वपूर्ण तथ्यका उद्घाटन किया तथा साध्यज्ञान ही अनुमान है, इसका समर्थन किया।
इस प्रकार जैन अनुमानको परिभाषाका मूल रूप स्वामी समन्तभद्रको 'सधर्मणैव साध्यस्य' इस आप्तमीमांसाकी कारिका ( १०६ )में निहित है और उसका विकसित रूप सिद्धसेनके न्यायावतार ( का० ५ )से आरम्भ होकर अकलंकको उपर्युक्त लघीयस्त्रय । का० १२ ) और न्यायविनिश्चय ( द्वि० भा० २।१ ) गत दोनों परिभाषाओंमें परिसमाप्त है। लघीयस्त्रयको अनुमानपरिभाषा तो इतनी व्यवस्थित, युक्त और पूर्ण है कि उसमें किसी भी प्रकारके सुधार, संशोधन, परिवर्द्धन या परिष्कारकी भी गुंजायश नहीं है । अनुमानका प्रयोजकतत्त्व क्या है और स्वरूप क्या है, ये दोनों बातें उसमें समाविष्ट है ।
गौतमको 'तत्पूर्वकमनुमानम्',प्रशस्तपादकी 'लिंगदर्शनात् संजायमान लैंगि
१. धारणाख्योऽनुभवः स्मृतौ हेतुः। तादात्विकानुभवस्मृती प्रत्यभिशाने। स्मृतिप्रत्यभि
शानानुभवाः साध्यसाधनविषयास्तकें । तद ल्लिंगशानं व्याप्तिस्मरणादिसहकृतमनुमानोत्पत्तौ निबन्धनमित्येतत्सुसंगतमेव ।
-न्यायदी० पृष्ठ ६६, ६७ । २. भवतु वाऽयमों लैंगिको प्रतिपत्तिरनुमानमिति । ननु च फलाभावो दोष उक्तः ? न दोषः । हानोपादानोपेक्षाबुद्धीनां फलत्वात् ।
-न्यायवा० १।११३, पृष्ठ २८, २६ । ३. वही, १११॥३, पृ० २६ । ४. न्या० सू० १६१।५।