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९४ : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान- विचार
नहीं है तो वह साधन नहीं है । भले ही उसमें तीन रूप और पांच रूप भी विद्यमान हों। जैसे 'स श्यामः तत्पुत्रत्वात् इतरपुत्रवत्', 'वज्रं लोहलेख्यं पार्थिवत्वात् काष्टवत्' इत्यादि हेतु तीन रूपों और पांच रूपोंसे सम्पन्न होने पर भी अविनाभाव के अभाव से सद्धेतु नहीं हैं, अपितु हेत्वाभास हैं और इसीसे वे अपने साध्योंके गमक — अनुमापक नहीं हैं । इस सम्बन्ध में हम विशेष विचार हेतुलक्षणके प्रसंग में करेंगे ।
विद्यानन्दने अकलंकदेवका अनुमानलक्षण आदृत किया है और विस्तारपूर्वक उसका समर्थन किया है । यथा
साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानं विदुर्बुधाः ।
“साध्याभावासम्भवनियमलक्षणात् साधनादेव शक्याभिप्रेताप्रसिद्धत्वलक्षणस्य साध्यस्यैव यद्विज्ञानं तदनुमानं आचार्या विदुः । 9
तात्पर्य यह कि जिसका साध्यके अभाव में न होनेका नियम है ऐसे साधनसे होनेवाला जो शक्य, अभिप्रेत और अप्रसिद्ध रूप साध्यका विज्ञान है उसे आचार्य ( अकलङ्क ) ने अनुमान कहा है ।
विद्यानन्द अनुमान के इस लक्षणका समर्थन करते हुए एक महत्त्वपूर्ण युक्ति उपस्थित करते हैं । वे कहते हैं कि अनुमानके लिए उक्त प्रकारका साधन और उक्त प्रकारका साध्य दोनोंको उपस्थिति आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है । यदि उक्त प्रकारका साधन न हो तो केवल साध्यका ज्ञान अनुमान प्रतीत नहीं होता । इसी तरह उक्त प्रकारका साध्य न हो तो केवल उक्त प्रकारका साघनज्ञान भी अनुमान ज्ञात नहीं होता । आशय यह कि अनुमानके मुख्य दो उपादान हैंसाधनज्ञान और साध्यज्ञान । इन दोनोंकी समग्रता होने पर ही अनुमान सम्पन्न होता है ।
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माणिक्यनन्दि अकलंकके उक्त अनुमानलक्षणको सूत्रका रूप देते हैं और उसे स्पष्ट करनेके लिए हेतुका भी लक्षण प्रस्तुत करते हैं । यथासाधनात्साध्य विज्ञानमनुमानम् ।" साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ।
१. (क) साध्याभावासम्भवनियमनिश्चयमन्तरेण साधनत्वासम्भवात् ।
- विद्यानन्द, त० श्लो० १।१३ २००, पृष्ठ २०६ ।
(ख) साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः । - माणिक्यनन्दि, प० मु० ३। १५ । २. त० इलो० १।१३।१२०, पृष्ठ १९७ । ३ - ४. वही, १ । १३ । १२० पृष्ठ १६७ ।
५. प० मु० ३।१४ । ६. वही, ३।१५ ।