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________________ प्रफ देखने का ध्यान रखा गया, किंतु कार्य की अधिकता आदि से कुछ खास अशुद्धियाँ दिखाई दी। उनका शुद्धि पत्र दिया गया है। इस पुस्तक की १५० प्रतियाँ श्रीमान् सेठ कल्याणमलजी भुरालालजी पालडेचा धनोप (वाया-भिणाय, जिला-अजमेर) निवासी ने अग्रिम क्रय करके जैन स्वाध्याय संघ के सदस्यो को भेट स्वरूप प्रदान की। अतएव धन्यवाद । स्वाध्याय एक प्राभ्यन्तर तप है । ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होकर सम्यग्ज्ञान मे वृद्धि होने का साधन है । इससे धर्म मे स्थिरता होती है। भावपूर्वक किये हुए स्वाध्याय से आत्मा पवित्र होती है । अतएव मन की अस्थिरता को दूर कर गात भाव से अर्थ मे ध्यान रखते हुए स्वाध्याय करना चाहिए। साधुमार्गी जैन सघ, सम्यग्ज्ञान का प्रचार करने के लिए आगम साहित्य का प्रकाशन कर रहा है । अबतक छोटी बडी १५ पुस्तको का प्रकाशन कर चुका है और अब भगवती सूत्र भाग २ का कार्य चालू किया है । यदि संघ को धर्मप्रिय उदार महानुभावो का सहयोग प्राप्त होता रहा और अनकलता रही, तो यह विशेषरूप से सेवा करता रहेगा। वीर सं २४६१ चैत्र कृ १ वि. सं. २०२१ । ता. १८-३-६५ मानकलाल पोरवाड़-अध्यक्ष रतनलाल डोशी-प्रधान मन्त्री बाबूलाल सराफ-मन्त्री जशवंतलाल शाह-मन्त्री । ४
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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