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निवेदन
हमारे समाज मे आगमो के मलपाठ का स्वाध्याय करने की रीति चाल है । त्यागी वर्ग के अतिरिक्त उपासको मे से भी कई धर्मप्रिय बन्धु, माताएँ और वहिने दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, सुखविपाक और नन्दीसूत्र आदि आगमो के मल पाठ का स्वाध्याय तथा स्तोत्र स्तुति का पाठ करती है । कुछ प्रशस्त आत्माओ के तो ऐसा नियम होता है कि प्रति दिन अमुक परिमाण मे मूलपाठ का स्वाध्याय करना ही। यद्यपि ऐसी प्रशस्त आत्माएँ कम ही हैं और बहुत वडा भाग प्रात.काल मे समाचार पत्र पढने या रेडियो न्यूज तथा गायन सुनने का शौकीन हैं, फिर धमिाण अात्माएँ भी हैं । वे आगम स्वाध्याय करती है क उनकलिए पुस्तक का साधन होना आवश्यक है।
स्वाध्याय पाठमाला की विभिन्न स्थानो से कई पुस्तके 'निकली है और उनका उपयोग हुआ है, फिर भी वर्तमान समय मे वैसी पुस्तक अलभ्य होगई। और हमारे सामने कई दिनो से मांग आ रही थी, किंतु हम अन्य कामों मे लगने से टालते रहे । किंतु गत जुलाई मे खीचन निवासी स्व श्रीमान् सेठ अगरचंदजी सा. गोलेच्छा की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती हुलासवाई की ओर से उनकी सुपुत्री विदुषी सुश्राविका श्रीमती लीलावाई एव पौत्र श्री पूर्णचन्द्रजी (कोयम्बटुर) की प्रेरणा हुई। उन्होने बहुश्रुत श्रमण श्रेष्ठ प. मुनिराज श्री समर्थमलजी म सा के विद्वान सुशिष्य पं श्री घेवरचंदजी म वीरपुत्र द्वारा पूर्व की संशोधित प्रति मुझे भेजी और उस पर से मुः हुआ। किंतु उस संशोधित प्रति का पूरा उपयोग नहीं हो सका।
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