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जैन स्वाध्यायमाला
हत्थेण तं गहेऊणं, एगंतमवक्कमे |८५ | एगतमवक्कमित्ता, अचित्त पडिलेहिया । जय परिवेज्जा, परिट्ठप्प पक्किमे | ६ | सिया य भिक्खु इच्छिज्जा, सिज्जमागम्म भुत्तुय । स- पिंडपायमागम्म, उडुयं पडिलेहिया | ८७ | विणएण पविसित्ता, सगासे गुरुणो मुणी । इरियावहियमायाय, आगो य पडिक्कमे ||
भोत्ताण नीसेस, अइयारं च जहक्कम | गमणागमणे चेव, भत्तपाणे व संजए |८| उज्जुप्पन्नो अणुविग्गो अवक्खित्तेण चेयसा । थालोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे ॥ ६०॥ न सम्ममालोय हुज्जा, पुत्रि पच्छा व ज कड | पुणो पडिक्कमे तस्स, वोसिट्ठो चितए इमं ॥१॥ अहो ! जिणेहि सावज्जा. वित्ती साहूण देसिया | मोक्ख- साहणहे उस्स, साहु - देहस्स धारणा | १२ णमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथव । सभायं पवित्ताण, वीसमेज्ज खणं मुणी ॥६३॥ वीसमतो इमं चिते हियमट्ठ लाभमट्टियो ।
जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू हुज्जामि तारिओ | १४ | साहवो तो चियत्तेण, निमंतिज्ज जहक्कमं । जइ तत्य केइ इच्छिज्जा, तेहि सद्धि तु भुजए |५| अह कोइ न इच्छिज्जा, तनो भुजिज्ज एगओ । आलीए भायणे साहु, जयं परिसाडियं । ६६ ।