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बृहदालोयणा
केवली भाषित शास्त्र, यहि जैन मत मर्म ।२२ प्रारभ विषय कषाय तज, शुद्ध समकित व्रत धार । जिन अाज्ञा परमाण कर, निश्चय खेवो पार ।२३। क्षण निकमो रहनो नही, करनो प्रातम काम । भणनो गणनो शीखनो, रमनो ज्ञान राम ।२४। अरिहत सिद्ध सब साधुजी, जिन आज्ञा धर्म सार । मंगलिक उत्तम सदा, निश्चय शरणा चार १२५ घड़ी घडी पल पल सदा, प्रभु सुमरण को चाव । नरभव सफलो जो करे, दान शील तप भाव ।२६॥
सिद्धा जैसो जीव है, जीव सोही सिद्ध होय । कर्म मेल का प्रातरा, बूझे विरला कोय ।११ कर्म पुद्गल रूप है, जीव रूप है ज्ञान । दो मिलकर बहु रूप है, विछड्या पद निर्वाण ।२। जीव करम भिन्न भिन्न करो, मनुष्य जन्म को पाय । ज्ञानातम वैराग्य से, धीरज ध्यान जगाय ।३। द्रव्य थकी जीव एक है, क्षेत्र असख्य प्रमाण । काल थकी सर्वदा रहे, भावे दर्शन ज्ञान ।४। गभित पुद्गल पिंड मे, अलख अमूरति देव । फिरे सहज भव चक्र मे, यह अनादि की टेव ।५॥ फूल अतर घी दूध मे, तिल मे तेल छिपाय । यू चेतन जड करम संग, बध्यो ममत दुख पाय ।६।