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जैन स्वाध्यायमाला
मोह अज्ञान मिथ्यात्व को, भरियो रोग अथाग। वैद्यराज गुरु शरण से, औषध ज्ञान वैराग ।११॥ जे मै जीव विराधिया, सेव्या पाप अठार । प्रभ तुम्हारी साख से,वारवार धिक्कार ।१२। बुरा बुरा सब को कहू, बुरा न दीसे कोय । जो घट शोधू आपणो, तो मोसु बुरो न कोय ।१३। कहेवा मे आवे नही अवगुण भरया अनंत। . लिखवा मे क्यु कर लिखू, जानो श्री भगवत ।१४। करुणानिधि कृपा करी, कठिन कर्म मोय छेद । मोह अज्ञान मिथ्यात्व को, करजो ग्रथीभेद ॥१५॥ पतित उद्धारन नाथजी, अपनो विरुद विचार । भूल चूक सब माहरी, खमिये वारवार ।१६। माफ करो सब माहरा, आज तलक ना दोष । दीनदयाल देवो मुझे, श्रद्धा शील संतोष ।१७। आतम निंदा शुद्ध भणी, गुणवत वदन भाव । रागद्वेष पतला करी, सबसे खमत खमाव 1१८॥ छु, पिछला पाप से, नवा न बाँधु कोय । श्रीगुरुदेव प्रसाद से, सफल मनोरथ होय ।१६। परिग्रह ममता तजी करी, पंच महाव्रत धार । अत समय आलोयणा, करू संथारी सार ।२०। तीन मनोरथ ए कह्या, जो ध्यावे नित्य मन्न । शक्ति सार वरते सही, पावे शिव सुख धन्न ।२१। अरिहंत देव निग्रंथ गुरु, सवर निर्जरा धर्म ।