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नन्दीसूत्र-सघस्तुति
भद्द सुरासुरनमंसियस्स, भद्द धुयकम्मरयस्स ।। गुण-भवण-गहण सुय-रयण-भरिय, दसण विसुद्धरत्थागा। सघ-नगर ! भ६ ते, अखड चारित्तपागारा ।४। सजम-तव-तुबारयम्स, नमो सम्मत्त-पारियल्लस्स । अप्पडिचक्कस्स जयो होउ, सया संघचक्कस्स (५॥ भई सील-पडागूसियस्स, तव-नियम-तुरय-जुत्तस्स । सघरहस्म भगवग्रो, सज्झायसुनदिघोसस्स ।६। कम्मरय-जलोह-विणिग्गयस्म, सुयरयण-दीहनालस्स । पंच-महन्वय-थिरकण्णियस्स, गुणकेसरालस्स ।७। सावग-जण-महुयर-परिवुडस्स, जिण-सूर-तेय-बुद्धस्स । सघपउमस्स भई, समण-गण-सहस्स-पत्तस्स ।। तव-संजम-मयलछण, अकिरिय-राहुमुह-दुद्धरिस निच्च । जय संघ-चद ! निम्मल-सम्मत्त-विसुद्ध-जोण्हागा ।।। पर-तिथिय-गह-पह-नासगस्स, तवतेय-दित्त-लेसस्स । नाणु-ज्जोयस्स जए, भदं दम-संघ-सूरस्स ।१०। भद्द धिइ-वेला-परिगयस्स, सज्झाय-जोग-मगरस्स । अक्खोहस्स भगवग्रो, सघ-समुद्दस्स रुंदस्स ११११ सम्म-दमण-वर-वइर-दढ-रूढ-गाढावगाढ-पेढस्स । धम्म वररयण-मडिय-चामीयर-मेहलागस्स ।१२। निय-मूसिय-कणय-सिलाय-लुज्जल-जलंत-चित्तकूडस्स । नदण-वण-मणहर सुरभि-सील-गधुद्धमायम्स ११३। जीवदया-सुदर-कद-रुद्दरिय-मुणिवर-मइद-इण्णस । हे उ-सय-धाउ-पगतंत-रयणदित्तोसहि-गुहस्स ।१४।