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जैन स्वाध्यायमाला
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सवर-वर-जल-पग-लिय-उज्झर-पविराय-माणहारस्स | सावग-जण-पउर-रवत - मोर - नच्चत - कुहरस्स | १५ | विणय-नय-पवर- मुणिवर-फुरत - बिज्जुज्जलत सिहरस्स । विविह-गुण- कप्प-रुक्खग- फलभर कुसुमाउल-वणस्स । १६। नाण-वर रयण - दिप्पत- कत-वेरुलिय- विमल-चूलस्स । वदामि विणय पण, सघ महामदर - गिरिस्स | १७| गुण रयणुज्जल-कडयं, सील सुगधि तव मडिउद्देस । सुयवारसंग सिहर, सघ - महामदरं वदे | १८ | नगर-रह- चक्क पउमे, चदे सूरे समुद्द - मेरुम्मि | जो उवमिज्जइ सयय, त सघगुणायर वदे | १६ वदे उसभ अजिय, सभवमभिनदण-सुमइ-सुप्पभ-सुपासं । ससि - पुप्फदत सीयल - सिज्जंस वासुपुज्जं च ॥२०॥ विमल मणंत च धम्मं सति, कुंथु अरं च मल्लि च । मुनिसुव्वय- नमि नेमि, पास तह वद्धमाण च ॥ २१ ॥ पढमित्थ इंदभूई, वीए पुण होइ अग्गिभूइत्ति । तइए य वाउभूई, तो वियत्ते सुहम्मे य | २२| मडि य मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य । मेयज्जे य पहासे य, गणहरा हुति वीरस्स । २३| निव्वुइ - पह- सासणय, जयइ सया सव्व-भाव - देसणय | कु-समय-मय-नासणय, जिणिदवर - वीर - सासणय |२४| सुहम्म अग्गवेसाणं, जवूनामं च कासवं । पभव कच्चायण वंदे, वच्छ सिज्जंभव तहा |२५| जसभद्द तुगिय वदे, संभूयं चेव माढरं ।
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