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जन स्वाध्यायमाला
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मोसस्स पच्छा य पुरत्थरो य, पमोगकाले य दुही दुरंते। ' एवं अदत्ताणि समाययतो, रूवे अतित्तो दुहिनो अणिस्सो १३॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ॥३२॥ एमेव रूवम्मि गो परोसं, उवेइ दुक्खोह परंपरायो। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।३३। रूवे विरत्तो मणो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण ।। न लिप्पई भवमझेऽवि सतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं :३४। सायस्स सदं गहण वयंति, त रागहेउ तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउ अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ।३५॥ सद्दस्म सोय गहण वयंति, सोयस्स सद्द गहणं वयंति । रागस्स हेउ समणुनमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ।३६। सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ।३७। जे यावि दोस समुवेइ तिव्व, तसि क्खणे से उ उवेइ दुवखं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सद्द अवरुज्झई से ।३८॥ एगंतरत्ते रुइरसि सद्दे, अतालिसे से कुणई परोसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ३६॥ सद्दाणगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे। चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अतद्वगुरू किलिछे।४०॥ सद्दाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए वियोगे य कहं सुहं से, सभोगकाले य अतित्तलाभे।४१॥ सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि।