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उत्तराध्ययन सूत्र अ ३२
जे काइयं माणसिय च किंचि, तस्सतगं गच्छइ वीयरागो ।१९। जहा य किम्पागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य भज्जमाणा। ते खडए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगणा विवागे ।२०) जे इदियाण विसया मणुन्ना, न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामणुनेमु मणऽपि कुज्जा, समाहिकामे समणे तवस्सी ।२१॥ चक्खुस्स रूव गहणं वयति, त रागहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो।२२। रूवस्स चक्खु गहण वयति, चवखुस्स रूव गहण वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ।२३। रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालियं पावइ से विणास । रागाउरे से जह वा पयगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ।२४। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्व, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुईत सेण सएण जतू, न किञ्चि रूवं अवरज्झई से ।२५॥ एगंतरत्ते रुइरसि रूवे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो।२६॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे। चित्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिठे ।२७। रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निरोगे। वए वियोगे य कहं सुह से, सम्भोगकाले य अतित्तलाभे ॥२८॥ रूवे अतित्ते य परिगहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तदि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले पाययई अदत्तं ।२६। तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्या वि दुक्खा न विमुच्चई से ।३०॥