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२-व्रव्य गुण पर्याय
२-व्याधिकार (६३) तेजस व कार्माण शरीर किसके होते हैं ?
चारों गति के सब संसारी जीवों के तैजस और कार्माण शरीर होते हैं। आत्मा के निश्चय से कौनसा शरीर होता है ? आत्मा को कोई शरीर नहीं होता अथवा ज्ञान ही उसका
शरीर है। ६५. तुम्हारा शरीर किस जाति का है ?
औदारिक। ६६. जितने भी दृष्ट पदार्थ हैं वे कौन से शरीर हैं ?
ये सब षट्कायिक जीवों के औदारिक शरीर हैं या थे। ६७. क्या तुम्हारे इसके अतिरिक्त शरीर भी हैं ?
हां, कार्माण व तैजस ये दो शरीर सभी संसारी जीवों को सामान्य रूप से होते हैं, वे मेरे भी हैं। तेजस व कार्माण शरीर कहां रहते हैं तथा दिखाई क्यों नहीं
वे इस बाह्य औदारिक व वैक्रियक शरीर के भीतर उनके साथ
ओत प्रोत होकर रहते हैं । सूक्ष्म होने से दिखाई नहीं देते। ६६. लोक में जो कुछ भी दृष्ट है वह सब क्या है ?
किसी न किसी जीव के जीवित या मृत शरीर ही दृष्ट हैं, अन्य कुछ नहीं । जैसे—यह मकान पृथिवीकायिक जीव का मृत शरीर है और यह शान्ति लाल का जीवित शरीर । यह जूता त्रस जीव का मृत शरीर है और यह वस्त्र वनस्पति
कायिक का । १००. पांचों इन्द्रियों के विषय कौन कौन वर्गणायें हैं ?
स्पर्श रसना घ्राण व नेत्र इन चार इन्द्रियों के द्वारा जो कुछ भी ग्रहण होता है वह सब आहारक वर्गणा है, क्योंकि वह सब स्थूल जीवित या मृत औदारिक शरीर है । कर्ण इन्द्रिय द्वारा भाषा वर्गणा का ग्रहण होता है । मनो वर्गणा, तेजस वर्गणा और कार्माण वर्गणा ये तीनों तथा उनके द्वारा निर्मित मन और तैजस कार्माण शरीर सूक्ष्म होने के कारण किसी