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२-द्रव्य गुण पर्याय
२/१-सामान्य अधिकार
२६. द्रव्य के तीनों लक्षणों का समन्वय करो
द्रव्य में गुण सामान्य अंश है और पर्याय उसके ही विशेष हैं, जेसे रस सामान्य है और खट्टा मीठा उसके विशेष । इसलिये पहिला व दूसरा लक्षण एक है। गुणों का समूह कहो या गुण पर्यायों का एक ही बात है, क्योंकि विशेष को छोड़कर सामान्य या पर्याय को छोड़कर गुण नहीं रहता।-गुण ध्रुव है और पर्याय उत्पाद व्ययवाली। इसलिये गुण व पर्याय दो का समूह कहने से वह स्वतः उत्पाद व्यय व ध्रौव्य तीनों से युक्त हो जाता है और वही सत् का लक्षण है । अतः दूसरा व तीसरा लक्षण एक
है । गुण पर्यय वाला कहो या सत् एक ही बात है। ३०. द्रव्य को सत्, द्रव्य, वस्तु, पदार्थ व अर्थ आदि नाम कैसे वे
सकते हैं ? द्रव्य का अस्तित्व है इसलिये वह 'सत्' है। वह सत् उत्पाद व्यय युक्त होने से 'द्रव्य' है क्योंकि नित्य परिणमन ही द्रव्यत्व का लक्षण है । इसी उत्पाद व्यय के कारण अर्थ क्रिया होती रहने से अथवा कोई न कोई प्रयोजनभूत कार्य होता रहने से वह 'वस्तु' है, क्योंकि अर्थ क्रिया ही वस्तुत्व का लक्षण है । गुणों व पर्यायों को प्राप्त होने से वह 'अर्थ' है क्योंकि अर्थ का लक्षण
प्राप्त होना है । अर्थ पद युक्त होने से पदार्थ है। ३१. अर्थ किसे कहते हैं ?
अर्थ शब्द 'ऋ' धातु से बना है, जिसका अर्थ प्राप्त करना या प्राप्त होना है। जो अपने गुण पर्यायों को प्राप्त होता है, होता था व होता रहेगा, अथवा जिसे गुण पर्याय प्राप्त करते हैं, करते थे व करेंगे, वह अर्थ है। अथवा द्रव्य गुण पर्याय तीनों को
युगपत कहने वाला एक शब्द 'अर्थ' है । ३२. पदार्थ किसको कहते हैं ?
अर्थ या पदार्थ एकार्थवाची हैं । ३३. सत्ता कितने प्रकार की है ?
दो प्रकार की है-एक महासत्ता दूसरी अवान्तर सत्ता।