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१-न्याय
४-नय अधिकार
नय की पद्धति है, जैसे-जीव ज्ञानस्वरूप या ज्ञानमयी है अथवा ज्ञान ही जीव है। निश्चय नय व सद्भूत व्यवहार में क्या अन्तर है ? गुण गुणी में अभेद करके कहना निश्चय नय है और भेद करके कहना सद्भूत व्यवहार नय है जैसे-जीव को ज्ञान स्वरूप या ज्ञानमय कहना निश्चय नय है और ज्ञानवान या ज्ञान वाला
कहना सद्भूत व्यवहार । ३४. अध्यात्म दृष्टि से निश्चय नय के कितने भेद हैं ?
वास्तव में निश्चय नय का कोई भेद नहीं, पर द्रव्य के स्वभाव का परिचय देने के लिये उपचार से उसके दो भेद कर दिये
जाते हैं-शुद्ध निश्चय व अशुद्ध निश्चय । ३५ शुद्ध निश्चय नय किसे कहते हैं ?
शुद्ध द्रव्य के स्वभाव को बताने वाला शुद्ध निश्चय है, जैसे
सिद्ध भगवान केवलज्ञान स्वरूप है, अथवा जीवज्ञान स्वरूप है। ३६. अशुद्ध निश्चय नय किसे कहते हैं ?
अशुद्ध द्रव्य के स्वभाव को बताने वाला अशुद्ध निश्चय है, जैसे
संसारी जीव मतिश्रुत ज्ञान स्वरूप है अथवा रागमयी है। ३७. निश्चय नय के ये भेद उपचार कैसे है ?
वास्तव में द्रव्य तो न शुद्ध है न अशुद्ध । शुद्ध अशुद्ध तो उसकी
पर्याय है । पर्याय को द्रव्य रूप से ग्रहण करके कहना उपचार है। ३८. क्या नय के इतने ही भेद हैं या और भी ?
और भी अनेक भेद प्रभेद हैं, जैसे द्रव्याथिक के १० भेद और पर्यायाथिक के ६ भेद शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं। पर उन सबका कथन यहाँ करने से विषय की जटिलता बढ़ती है । अत: यदि नय का विस्तृत व विशद ज्ञान प्राप्त करना है तो भु० जिनेन्द्र वर्णी कृत 'नय दर्पण' नामक ग्रन्थ देखिये । आगे इसी विषय का पृथक अध्याय भी दिया है।