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प्रष्टम अध्याय
(नय-प्रमाण) १ प्रमाणाधिकार
(१) प्रमाण किसको कहते हैं ?
(क) सच्चे ज्ञान को प्रमाण कहते हैं।
(ख) सकलार्थ ग्राही ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। २. सच्चा ज्ञान किसको कहते हैं ?
पदार्थ के अनुरूप यथातथ्य ज्ञान को प्रमाण ज्ञान कहते हैं। ३. पदार्थ के अनुरूप ज्ञान क्या ?
जैसा पदार्थ है बिल्कुल वैसा ही ज्ञान होना अथवा पदार्थ का सांगोपांग ज्ञान में आना पदार्थ के अनुरूप ज्ञान है। क्योंकि पदार्थ अनेकान्त अर्थात अनेक धर्मात्मक है, इसलिये अनेकान्ता.
त्मक ज्ञान ही पदार्थ के अनुरूप होने से सच्चा है। ४. ज्ञान अनेकान्त कैसे होता है ?
अनेक एकान्तों को मिलाने से ज्ञान अनेकान्त हो जाता है। एकान्त का अर्थ है नय । अतः अनेक नयों को मिलाने से ज्ञान
अनेकान्त या प्रमाण बन जाता है। ५. अनेक नयों को मिलाने से क्या समझे ?
एक नय से वस्तु के किसी एक धर्म का निर्णय होता है। क्रम पूर्वक पृथक पृथक अनेक नयों के द्वारा पदार्थ के अनेक धर्मों का अपनी योग्यतानुसार धीरे धीरे निर्णय करतें जाना चाहिये । इन अनेक धर्मों का ग्रहण यद्यपि ज्ञान में पृथक पृथक आगे पीछे हुआ है, परन्तु पदार्थ में ये सारे धर्म इस