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६-तत्वार्थ
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२-रत्नत्रयाधिकार
(४. सम्यग्चारित्र) ७०. सम्यग्चारित्र किसको कहते हैं ?
शुद्धात्मा की प्राप्ति के लिये प्रवृत्ति या व्यापार करने को
सम्यक्चारित्र कहते हैं। ७१. प्रवृत्ति या व्यापार से क्या समझे ?
मन वचन व काय की क्रियाओं को प्रवृत्ति या व्यापार कहते
७२. सम्यग्चारित्र कितने प्रकार का है ?
दो प्रकार का व्यवहार व निश्चय । ७३. व्यवहार सम्यक्चारित्र किसको कहते हैं ?
अशुभ प्रवृत्ति से हटकर शुभ प्रवृत्ति करना व्यवहार चारित्र
७४. अशुभ प्रवृत्ति किसको कहते हैं ?
हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह संचय आदि पाप तथा
क्रोधादि कषाय सब अशुभ प्रवृत्ति है । ७५. शुभ प्रवृत्ति किसको कहते हैं ?
व्रत, शील, संयमादि धारण करना, सत्य बोलना, दया दान सेवा करना, सच्चे देव शास्त्र गुरु की विनय भक्ति पूजा
आदि करना शुभ है। ७६. निश्चय चारित्र किसको कहते है ?
बाह्य क्रिया अर्थात पापों के निरोध से अथवा अभ्यन्तर क्रिया अर्थात योग व कषायों के निरोध से आविर्भूत आत्मा की शुद्धि विशेष निश्चय चारित्र है । इसी को साम्यता, माध्यस्थता व वीतरागता कहते हैं । अथवा शुद्धात्मध्यान में रत
रहना निश्चय चारित्र है। ७७. शुद्धात्मा के ध्यान से क्या होता है ?
निराकुलता होती है और वही स्वाभाविक आनन्द है।