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५-जणस्थान
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२-गुणस्थानाधिकार
३३. संज्वलन के उदय से संयम भाव कसे सम्भव है ?
वास्तव में प्रत्याख्यानावरण के उपशय से तद्योग्य संयम है पर
संज्वलन के उदय में होने से उपचार कथन किया है। (३४) छटे गुणस्थान में बन्ध कितनी प्रकृतियों का होता है ?
पांचवे गुणस्थान में जो ६७ प्रकृतियों का बन्ध होता है, उनमें से प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ इन चार व्युच्छिन्न प्रकृतियों के घटाने पर शेष रही ६३ प्रकृतियों का बन्ध
होता है। (३५) छटे गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का रहता है ?
पांचवें गुणस्थान में ८७ प्रकृतियों का उदय कहा है, उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति आठ घटाने पर शेष रही ७६ प्रकृतियों में आहारक शरीर व आहारक अंगोपांग (जो अनुदय रूप थी) ये दो प्रकृतियां मिलाने से ८१ प्रकृतियों का उदय होता है। (व्युच्छिन्न आठ = प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान माया लोभ,
तिर्यग्गति, तियंगायु, उद्योत और नीच गोत्र ) (३६) छटे गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का है ?
पांचवें गुणस्थान में १४७ प्रकृतियों की सत्ता कही है, उनमें से व्युच्छिन्न प्रकृति एक तिर्यगायु के घटाने पर १४६ प्रकृतियों का मत्व रहता है । क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ का ही
सत्व है। (३७) अप्रमत्त विरत सातवें गुणस्थान का क्या स्वरूप है ?
संज्वलन और नोकपाय के मन्द उदय होने से प्रमाद रहित संयम भाव होते हैं, इस कारण इस गुणस्थानवर्ती मुनि को
अप्रमत्तविरत कहते हैं। (३८) अप्रमत्त विरत गुणस्थान के कितने भेद हैं ?
दो हैं-स्वस्थान अप्रमत्त विरत और सातिशय अप्रमत्त विरत । (३६) स्वस्थान अप्रमत्त विरत किसको कहते हैं ?
जो हजारों बार छटे से सातवें में और सातवें से छटे गुणस्थान