________________
५-गुणस्थान
२४६
२-गुणस्थानाधिकार सच्चे धर्म की तरफ इसकी रूचि नहीं होती। जैसे पित्तज्वर वाले रोगी को दुग्धादिक रस कडुवे लगते हैं, उसी प्रकार
इसको भी समीचीन धर्म अच्छा नहीं लगता। (७) मिथ्यात्व गुणस्थान में किन-किन प्रकृतियों का बन्ध होता है ?
कर्म की १४० प्रकृतियों में से २० प्रकृतियों का अभेद विवक्षायें स्पर्शादिक चार में, बन्धन ५ और संघात ५ का अभेद विवक्षा से पांच शरीरों में, अन्तर्भाव होता है। इस कारण भेद विवक्षा से १४८ और अभेद विवक्षा से १२२ प्रकृतियां हैं । सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृति इन दो प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता है, क्योंकि इन दोनों प्रकृतियों की सत्ता सम्यक्त्व परिणाम से मिथ्यात्व प्रकृति के तीन खण्ड करने से होती है। इस कारण अनादि मिथ्यादृष्टि जीव के बन्ध योग्य प्रकृति १२० और सत्व योग्य प्रकृति १४६ है। मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थकर, प्रकृति, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता (अतः ये तीन अवन्ध प्रकृतियें कही जाती हैं। आगे जाने पर इनका बन्ध हो जायेगा) क्योंकि इन तीन प्रकृतियों का बन्ध सम्यग्दृष्टियों को ही होता है। इसलिये इस गुणस्थान में १२०
में से तीन घटाने पर ११७ प्रकृतियों का बन्ध होता है। (७) मिथ्यात्व गुणस्थान में उदय कितनी प्रकृतियों का होता है ?
सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग और तीर्थंकर प्रकृति, इन पांच प्रकृतियों का इस गुण स्थान में उदय नहीं होता, इसलिये १२२ में से पांच घटाने
पर ११७ का उदय होता है। (८) मिथ्यात्व गुणस्थान में सत्व कितनी प्रकृतियों का रहता है ?
एक सौ अड़तालीस प्रकृतियों का। () सासादन गुणस्थान किसको कहते हैं ?
प्रथमोपशम सम्यक्त्व के काल में जब ज्यादा से ज्यादा छ: